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कोटा की राजनीति में क्या गुल खिलाएगी ये दूसरी चड्ढी

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- ये पहला मौका नहीं जब कोटा की राजनीति में चड्ढी चुनावी मंचों तक पहुंची हो। 1996 के लोकसभा चुनाव में भी चड्ढी चुनावी मुददा बन चुकी है और उस चुनाव में दाउदयाल जोशी चुनाव हारते हारते बचे थे । पढिए वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र राहुल का ये संस्मरण।

चुनाव में कब क्या मुद्दा बन जाए? यह किसी को पता नहीं होता। न राजनीतिक दलों को और न चुनाव लड़ने वालों को। अखबारनवीस भी जो सामने आता है, उसे रिपोर्ट करते रहते हैं लेकिन उन्हें भी पता नहीं होता कि उनके शब्द किस पक्ष को लहूलुहान कर देंगे।

पिछले दिनों महामहिम ओम बिरला के बड़े भाई हरिकृष्ण बिरला ( छोट्या मास्टर के नाम से लोकप्रिय ) ने सार्वजनिक रूप से भाजपा के बागी प्रहलाद गुंजल के बारे में कहा था कि वे उन दिनों को भूल गए जब ओम बिरला के उतरे-फुतरे कपड़े पहनते थे। अब हर सभा में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रहलाद गुंजल हरिकृष्ण के कथन को दोहराते हुए कह रहे हैं कि मैं चड्ढी तक ओमजी की उतरी हुई पहनता था। अगर अपनी वाली पर आ गया तो सब कुछ तार तार कर दूंगा।

ऐसे में चुनाव में वे सारे मुद्दे गौण हो गए  जिन पर महामहिम से पूछा जाना था कि जब मोदी सरकार देश में 100 हवाई अड्डे बना रही थी तो फिर कोटा हवाई अड्डे को ही क्यों छोड़ दिया गया? हर हाल में मुद्दा तो हवाई अड्डा ही बनना चाहिए था। लेकिन लगता है कि चड्ढी ने कोटा एयरपोर्ट को पीछे धकेल दिया है।

वैसे भी यह चुनाव फटेहाल प्रहलाद गुंजल और अमीर ओम बिरला के बीच नहीं होने जा रहा है। आज दोनों उम्मीदवार करोड़ोपति हैं तो ऐसे में चड्ढी की तुक भी क्या है? लेकिन यह दूसरा मौका है जब चड्ढी चुनावी मुद्दा बन रही है।

मैं एक बार चड्ढी की वजह से तगड़े संकट में फंस चुका हूं। यह 1996 का लोकसभा चुनाव था। हाड़ौती के लोकप्रिय सांसद दाऊदयाल जोशी तीसरी बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। उस दौरान उनसे लिए गए इंटरव्यू ने चुनाव की धारा को मोड़ दिया था।

मैंने उनसे समय लिया और अगले दिन उनके दादाबाड़ी निवास पर साक्षात्कार लेने जा पहुंचा। इस दौरान भवानी सिंह राजावत और शिवनारायण सिंह भी वहां पहले से मौजूद थे।

मैंने उनसे पूछा कि आप दिल्ली में महंगी खादी के साफशफ्फाक कपड़े पहनते हैं और ट्रेन से कोटा आने से पहले साधारण कपड़े पहन लेते हैं ताकि आपकी गरीब ब्राह्मण की छवि बनी रहे।

इस पर दाऊजी ने कहा कि  मेंने तो जिंदगी में चड्ढी खरीदकर नहीं पहनी। दाल मील वाले जजमान हर साल मुझे ब्राह्मण होने के नाते जो सरोपा भेंट करते हैं। वहीं कपड़े सालभर पहनता हूं। साक्षात्कार के दौरान और भी बहुत सारे सवालों के सधे हुए जवाब दाऊजी ने दिए।

राजस्थान पत्रिका में उस समय कोटा डेस्क पर शशि थपलियाल जी थे। मैंने इंटरव्यू लिखकर उनके सामने रख दिया। उन्होंने उस पर हैडिंग लगाया -

मैंने जिंदगी में चड्ढी खरीदकर नहीं पहनी  -दाऊदयाल।

मुझे लगा कि वे शायद मजाक कर रहे हैं! 

ये क्या हैडिंग हुआ? मैंने कहा, इसे बदलो सरजी । लेकिन वे कड़क स्वर में बोले, यही हैडिंग जाएगा। उनसे बहस करना बेकार था। मेरी इच्छा थी कि साक्षात्कार फ्रंट पेज पर जाए लेकिन उन्होंने उसे पांचवें पेज पर ऊपर ही ऊपर चिपकाया। उस समय संपादकीय प्रभारी जगदीश शर्मा जयपुर गए थे। किससे कहते? इसलिए न हैडिंग बदला और न पृष्ठ। उस दिन बड़े खिन्न भाव से घर लौटा कि इंटरव्यू का सत्यानाश कर दिया गया।

खैर, मैं गलत था।

पांचवें पेज पर छपने के बावजूद उसे खूब पढ़ा गया। दाऊजी इसके तीसरे दिन अंता में थे। उन्होंने सिगरेट के कवर पर दो पंक्तियां लिखी

  जोधपुर से भी आज फोन आया। सभी को इंटरव्यू बहुत पसंद आया। आगे भी ऐसा ही सहयोग बनाए रखिए। -  आपका दाऊदयाल। 

शाम को विज्ञप्तियों के बंडल के साथ उनका हरकारा मुझे सिगरेट के रैपर पर लिखा संदेश भी दे गया। मैंने उसे पढ़ा, मुस्कुराया और फाड़कर फैंक दिया।

धुआंधार चुनाव प्रचार

शुरू हो चुका था। मैंने तय किया कि एक- एक दिन दोनों प्रत्याशियों के साथ रहूं। वे क्या मुद्दे उठाते है? कैसा रिस्पांस उन्हें मिलता है?  कितनी भीड़ उमड़ती है? इस पर रिपोर्ट तैयार करूं। 

एक दिन कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण मीणा के साथ रहा तो हर सभा में उन्होंने एक ही बात कही कि  ऊदयाल कैसे झूठे आदमी हैं। राजस्थान पत्रिका में कहते हैं कि मैंने चड्ढी खरीदकर नहीं पहनी। अब आप ही बताओ गांव वालो कि कोई सरोपे में ब्राह्मण को चड्ढी देता है।

इस पर सारे गांव वालों ने आवाज मिलाई कि सरोपे में चड्ढी न दे साहब! उस दिन देर रात तक उन्होंने करीब दस गांवों में सभा की। मालाएं पहनने में भले बीस मिनिट लगे होंगे लेकिन इन चार पंक्तियों के अलावा कुछ और बोला ही नहीं। इसके बाद उन्होंने करीब चार सौ सभाएं की होंगी। सभी में यहीं भाषण।

आखिर मतगणना का दिन भी आ पहुंचा। जानकीदेवी बजाज कन्या महाविद्यालय में कई दौर में आगे-पीछे रहने के बाद दाऊदयाल 684 वोटों से जैसे तैसे जीत पाए। 

मैं उनकी प्रतिक्रिया लेने लपका। दाऊजी मुझे देखते ही फट पड़े  म्हारे साथ था नै आछी न्ह करी। अश्यो इंटरव्यू ल्यो, मूं हारतो हारतो बचो इसके बाद वे तमककर बोले- साजिश की है आपने मेरे साथ, देखूंगा !

मैं सफाई में कुछ कहता, तब तक माला पहनाने वालों ने उन्हें घेर लिया। भीड़ मुझे किनारे पर धकेल चुकी थी।

मैं उनसे कहना चाहता था कि- दाऊजी मुझे भी कहा पता था कि चड्ढी इत्ता बड़ा मुद्दा बन जाएगी। 

बात यहीं तक नहीं थमी। दाऊजी ने पत्रिका के संस्थापक संपादक कर्पूरचन्द्र कुलिश से मेरी शिकायत की कि राहुल ने उन्हें हराने की कोशिश कीं। तो जांच करने कार्यकारी संपादक मोतीचंद कोचर साहिब कोटा आए। बंद कमरे में उन्होंने मुझ से कहा कि दाऊदयाल जी को लगता है कि आपने उन्हें हराने की कोशिश की? 

मैंने उन्हें पूरी कहानी सुनाई। शशि थपलियाल से पूछे कि मैंने हैडिंग में चड्ढी का विरोध किया था या नहीं। मेरे पूरे साक्षात्कार को भी पढ़िए और वो पंक्तियां बताइए, जहां लगता है कि मेरी नियत उन्हें हराने की थी। दाऊजी से भी पूछिए कि सिगरेट के पैकिट के पिछवाड़े उन्होंने क्या लिखा था? 

मैंने कहा - किसी को पता नहीं था कि चड्ढी मुद्दा बन जाएगी, लेकिन बन गई या प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार द्वारा बना दी गई। 

मेरा स्पष्टीकरण लेने के बाद इस शिकायत पर आगे फिर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

 

सांच को आंच क्या?

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Pradyumn Sharma: A Dedicated Voice in Journalism Pradyumn Sharma is a prominent journalist known for his significant contributions to the field of journalism through his work with "Styarth Kranti," a media outlet dedicated to spreading awareness about important societal issues. With a keen sense of investigative reporting and a passion for uncovering the truth, Sharma has made a name for himself as a reliable source of information.


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