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मध्यप्रदेश की सतना संसदीय सीट: भाजपा का अभेद्य गढ़

Loksabha -2024 Satna

पटेल और ब्राम्हण वोटरों भाजपा का आधार

दो पूर्व मुख्यमंत्री खा चुके हैं शिकस्त

मध्यप्रदेश की सतना लोकसभा सीट से सांसद गणेश सिंह को ही भाजपा ने पांचवी बार मैदान में उतारा है। हालांकि वे विधानसभा चुनाव  हार चुके हैं लेकिन पिछले चार चुनावांे से लगातार चुनाव जीतकर इस सीट को भाजपा का अभेद्य किला बनाए हुए हैं। अब कांग्रेस के प्रत्याशी की घोषणा के बाद ही साफ हो पाएगा कि लगातार छह चुनाव से कब्जा जमाए बैठी भाजपा का सामना इस सीट पर कांग्रेस के किस दिग्गज से है।

यह सीट भाजपा का मजबूत किला मानी जाती रही है जिसे भेदने के लिए भाजपा का खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है।  

सतना प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मैहर और चित्रकूट के लिए जानी जाती हैं। इस सीट पर लगातार जीत का छक्का लगा चुकी के लिए यहां के ब्राह्मण और पटेल मतदाता राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं। अध्यात्म और व्यापार के क्षेत्र में धनी इस अंचल के राजनेता कई बार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र रहे हैं।

सतना से सांसद बनने वाले तीन नेता कई राज्यों के राज्यपाल बने तो इस सीट से मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने भी चुनाव जीता। सतना से दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1996 में बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और वीरेंद्र सकलेचा को पराजित किया था।

सतना संसदीय सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे। साल 1957 और साल 1962 में सतना स्वतंत्र सीट नहीं थी। पांचवीं लोकसभा के गठन के लिए साल 1971 में हुए चुनाव में भारतीय जनसंघ के नरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का वर्चस्व खत्म कर दिया।

 

साल 1977 में जनता पार्टी के सुखेंद्र सिंह भारतीय लोकदल के टिकट पर जीते। साल 1980 और 1984 में यह सीट कांग्रेस के पास रही। सबसे बड़ा उलटफेर वर्ष 1996 में हुआ, जब बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने चुनाव जीत लिया। सुखलाल कुशवाहा प्रदेश के बसपा के पहले सांसद थे। वर्ष 1998 के बाद से यह सीट लगातार भाजपा के पास है।

अटलजी के कारण जुडे ब्राह्मण मतदाता

साल 1998 में हुए चुनाव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के कारण यहां के ब्राह्मण मतदाता भाजपा के साथ हो गए। वर्ष 1998 में जितना प्रभाव राम मंदिर मुद्दे का था, उतना ही प्रभाव ब्राह्मण मतदाताओं के बीच अटल का था।

37 प्रतिशत पटेल मतदाता और 39 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाताओं की युति ने इस सीट को भाजपा के अभेद्य किले के रूप में तब्दील कर दिया। यही कारण है कि वर्ष 1998 और 1999 के चुनाव में भाजपा के रामानंद सिंह और 2004 से लेकर अब तक लगातार गणेश सिंह चुनाव जीतते आ रहे हैं।

तीन राज्यपाल दिए

वर्ष 1980 में कांग्रेस से सांसद चुने गए गुलशेर अहमद वर्ष 1993 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने। गुलशेर सतना जिले की अमरपाटन विधानसभा सीट से भी चुनाव जीते थे। वह वर्ष 1972 से 1977 तक विधानसभा अध्यक्ष भी रहे।

 

एक अन्य सांसद अजीज कुरैशी मिजोरम और उत्तराखंड के राज्यपाल भी रहे। उन्हें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का प्रभार भी दिया गया था। 24 जनवरी, 2020 को प्रदेश सरकार ने उन्हें मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अजीज कुरैशी लोकसभा चुनाव के दौरान केवल दो बार सतना आए थे। पहली बार नामांकन करने और दूसरी बार जीत का प्रमाण पत्र लेने। राज्यपाल बनने वाले तीसरे सांसद अर्जुन सिंह थे।

ज्बकि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह केंद्रीय मंत्री भी रहे और राज्यपाल भी। अर्जुन सिंह 14 मार्च, 1985 को पंजाब के राज्यपाल बनाए गए और करीब आठ महीने तक इस पद पर रहे। इसके बाद वे फिर सक्रिय राजनीति में लौटे। साल 1991 में कांग्रेस ने सतना से अर्जुन सिंह को उम्मीदवार बनाया और वे विजयी रहे। बाद में वे यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल ने भी सतना सीट से कई बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

 

इन नेताओं ने किया प्रतिनिधित्व साल सांसद पार्टी

1962 शिवदत्त उपाध्याय, कांग्रेस

1967 देवेंद्र विजय सिंह, कांग्रेस

1971 नरेंद्र सिंह, जनसंघ

1977 दादा सुखेंद्र सिंह , भाजपा

1980 गुलशेर अहमद, कांग्रेस

1984 अजीज कुरैशी, कांग्रेस

1989 दादा सुखेंद्र सिंह, भाजपा

1991 अर्जुन सिंह, कांग्रेस

1996 सुखलाल कुशवाहा, बसपा

1998 रामानंद सिंह, भाजपा

1999 रामानंद सिंह, भाजपा

2004 गणेश सिंह, भाजपा

2009 गणेश सिंह, भाजपा

2014 गणेश सिंह, भाजपा

 

2019 गणेश सिंह, भाजपा

 

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