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क्या मानवेन्द्र सिंह की लकीर पार कर पाएंगे रामलाल

क्या मानवेन्द्र सिंह की लकीर पार कर पाएंगे रामलाल

-स्थानीय के मुद्दे पर मिला टिकट

-अब बाहरी की तुलना में मत बटोरना बना चुनौती 

झालावाड़। झालरापाटन विधानसभा सीट पर स्थानीय प्रत्याशी के नाम पर चुनाव लड रहे कांग्रेस प्रत्याशी राम लाल चौहान के लिए गत चुनाव में साढे 81 हजार वोट लाने वाले मानवेन्द्र सिंह की लकीर को क्रॉस करना चुनौति बन गया है। मानवेन्द्र सिंह कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी होकर 2018 के चुनाव में अब तक के सर्वाधिक 81 हजार 504 वोट लेकर आए थे। जबकि इससे पूर्व के दो चुनावों में स्थानीय प्रत्याशी मोहन लाल राठौर 49 हजार और मीनाक्षी चंद्रावत 53 हजार वोट पर सिमट चुके हैं। अब राम लाल के लिए बाहरी मनवेन्द्र सिंह को मिले मतों के लक्ष्य तक पहुंचना बडी चुनौती है।

 विधानसभा 2018 के चुनाव में झालरापाटन सीट पर कांग्रेस ने ऐन वक्त पर मानवेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाया था।  मानवेन्द्र सिंह भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह के पुत्र है जो बाद में कांग्रेस में आ गए.  जोधपुर के होने के कारण बाहरी प्रत्याशी के मुद्दे पर यहां से टिकट मांग रहे कुछ कांग्रेस नेताओं ने उनका  विरोध किया था। इसके बावजूद मानवेन्द्र सिंह ने गत चुनाव में 81 हजार 504 मत हासिल किए। हालांकि इसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री और इस सीट से तीन बार लगातार विधायक रह चुकी वसुंधरा राजे के सामने उनको करीब 35 हजार वोटों के भारी अंतर से हार का सामना करना पडा। लेकिन उनके द्वारा लिए गए वोट का आंकड़ा पूर्व में चुनाव लड चुके दो स्थानीय प्रत्याशियों की तुलना में बेहतर रहा। इससे पूर्व 1013 के चुनाव में स्थानीय प्रत्याशी मीनाक्षी चंद्रावत महज 53 हजार 488 वोट पर सिमट गई। इस चुनाव में कांग्रेस को करीब 61 हजार मतों के भारी अंतर से हार का मुंह देखना पडा था। जबकि इससे पूर्व 2008 के चुनाव में स्थानीय प्रत्याशी मोहनलाल राठौर महज 49 हजार मतों पर सिमट गए। इस चुनाव में भी कांग्रेस को 32 हजार मतों से करारी हार मिली। ऐसे में अब फिर चुनौती स्थानीय प्रत्याशी रामलाल चौहान के सामने है। देखना ये है कि आगामी 3 दिसम्बर को वे बहारी मानवेन्द्र सिंह की खींची हुई लकीर को पार कर पाते हैं या उसके अंदर सिंमट कर रह जाएंगे।  

शहरी क्षेत्र सबसे बडी चुनौती

विधानसभा चुनावों में झालावाड व झालरापाटन शहर सहित आसपास के गांव और रायपुर सुनेल क्षेत्र में एक-एक वोट बटोरना कांग्रेस के लिए सबसे बडी चुनौती है। झालावाड और झालरापाटन शहर के अधिकांश पोलिंग बूथों पर तो भाजपा और कांग्रेस का मतानुपात 3 : 1 के भारी अंतर का रहता है। यही हाल आसपास के गांवों और रायपुर क्षेत्र में रहता है। इसके बावजूद चौहान के प्रचार अभियान से दोनों शहर अभी तक पूरी तरह अछूते हैं। वे सुनेल पंचायत समिति के प्रधान रहे है और पिडावा क्षेत्र में उनकी खासी पकड बताई जाती है। जिसके चलते पूर्व के अन्य कांग्रेस प्रत्याशियों की तुलना में सौंधिया बहुल और पिडावा क्षेत्र के गांवों से उनका प्रदर्शन बेहतर रहने की उम्मीद है। लेकिन झालावाड और झालरापाटन शहरों के अधिकांश मतदाताओं के लिए चौहान नया चेहरा ही है। ऐसे में उनके लिए शहरी वोट जुटा पाना आसान नहीं होगा।  

भाजपा के पास है विकास की विरासत

इस सीट से भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पांचवीं बार चुनाव मैदान में है। उनके पास गिनाने के लिए विधानसभा क्षेत्र सहित पूरे जिले में कराए दर्जनों विकास के काम हैं। राजे द्वारा किए विकास कार्य और उनकी लोकप्रियता के पहाड को पार करके नए वोट जुटा पाना तो दूर कांग्रेस के परम्परागत वोट बचा पाना भी चौहान के लिए बडी चुनोती है। ऐसे में उनका पूरा अभियान कांग्रेस की गहलोत सरकार की ओर से अंतिम छह माह में लॉच की गई चुनावी योजनाओं के दम पर ही टिका है।

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