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चिराग पासवान खो चुके हैं अपनी विश्वसनीयता!

चिराग के पिता रामविलास पासवान ने भी हालांकि जीवन भर जातिवादी राजनीति की जिसे उन्होंने सिद्धांतवादी राजनीति कहकर अलग-अलग दलों की सरकारों में मंत्री पद भोगे किंतु उन्होंने अपनी विश्वसनीयता कभी नहीं खोई। जबकि चिराग पासवान जातिवादी राजनीति के नाम पर स्वयं अपनी ही विश्वसनीयता खो रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही एनडीए की तीसरी सरकार के तीन बड़े स्टेक होल्डरों में से तीसरे चिराग पासवान ने वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अपनी विश्वसनीयता खो दी है!

पिछले दिनों उन्होंने जातीय जनगणना के मामले में राहुल गांधी के सुर में सुर मिलाया, वक्फ बोर्ड के प्रावधानों पर आपत्ति की तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का यह कहकर विरोध किया कि हम आरक्षण के कोटे के भीतर कोटे से सहमत नहीं हैं।

एनडीए सरकार पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी थी कि सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए क्रीमी लेयर वाले सुझाव से सहमत नहीं है, फिर भी चिराग ने जिस तरह उछल-उछल कर एनडीए के प्रति अपना विरोध स्पष्ट किया, वह एनडीए के लिए सिरदर्दी पैदा करने वाला है।

एनडीए सरकार का हिस्सा बनने के लिए चिराग पासवान लोकसभा चुनावों से पहले और बाद में यह कहते रहे हैं कि वे नरेन्द्र मोदी के हनुमान हैं, समझ में नहीं आता कि चिराग पासवान किस तरह के हनुमान हैं! हनुमानजी तो लंका को फूंक कर आए थे जबकि चिराग तो एनडीए को ही चिन्गारी दिखाने का काम कर रहे हैं।

चिराग पासवान को एनडीए तीन में केबीनेट मंत्री का पद दिया गया है, जबकि इस पद के लिए न केवल एनडीए के अन्य स्टेक होल्डर दलों में अपितु स्वयं बीजेपी में भी वर्षों से मंजी हुई राजनीति कर रहे नेता दावेदार थे किंतु लगता है कि चिराग को घी हजम नहीं हुआ!

चिराग के पिता रामविलास पासवान ने भी हालांकि जीवन भर जातिवादी राजनीति की जिसे उन्होंने सिद्धांतवादी राजनीति कहकर अलग-अलग दलों की सरकारों में मंत्री पद भोगे किंतु उन्होंने अपनी विश्वसनीयता कभी नहीं खोई। जबकि चिराग पासवान जातिवादी राजनीति के नाम पर स्वयं अपनी ही विश्वसनीयता खो रहे हैं।

जब एनडीए तीन बनी थी, तब सबको लगा था कि नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू एनडीए तीन पर दबाव की राजनीति करेंगे और चिराग के बारे में किसी को ऐसा अनुमान नहीं था कि वे पिद्दी न पिद्दी का शोरबा होते हुए भी सरकार पर इतना दबाव बनाने का प्रयास करेंगे।

चिराग की इन्हीं हरकतों के कारण बीजेपी चिराग के चाचा पशुपति पासवान के साथ नए सिरे से गठबंधन की तैयारियां कर रही हैं।

यह सही है कि लोकसभा चुनावों में चिराग के सहयोग के बिना न केवल एनडीए को अपितु स्वयं बीजेपी को भी बिहार में कुछ सीटें और कम मिलतीं किंतु यह भी उतना ही सही है कि बीजेपी के सहयोग के बिना चिराग को बिहार में एक भी सीट नहीं मिलती!

चिराग अपने इस कमजारे पक्ष को समझ नहीं पा रहे किंतु चाचा पशुपित पारस चिराग को यह बात एक बार फिर अच्छी तरह से समझा देंगे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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