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संसद का विशेष सत्र: जो भी होगा क्रांतिकारी होगा

केन्द्र सरकार ले सकती है बडे फैसले

केन्द्र सरकार 18 सितंबर से बुलाए जा रहे संसद के विशेष सत्र में चुनाव में प्रत्याशी और राजनीतिक पार्टियों के खर्च और महिला आरक्षाण को लेकर ठोस नीति ला सकती है। राजनीति के जानकार इस सत्र में यूनीफॉर्म सिविल कोड, नए संसद भवन में कामकाज और वन नेशन वन इलेक्शन की अटकलें लगान के साथ ही इस बात पर पूर्ण आश्वत हैं कि सरकार इस सत्र में जो कुछ करेगी वह क्रांतिकारी कदम होगा।

सरकार ने ऐसे ही विशेष सत्र के दौरान कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया था और तीन कृषि बिल पास करवाए थे। उस समय भी किसी को पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई और न ही एजेंडा सार्वजनिक किया गया। इस सत्र में भी सरकार बडे और नीतिगत फैसले ले सकती है।  

      जानकारों की मानें तो सरकार 2026 की जनगणना के बाद परिसीमन और महिला आरक्षण को लेकर नीति ला सकती है। वर्तमान में देश में औसतन 25 लाख से अधिक जनसंख्या पर एक लोकसभा सीट है। जबकि प्रत्येक सीसदीय क्षेत्र में 15 लाख पर जनसंख्या होनी चाहिए। ऐसे में 2026 की जनगणना के बाद पूरे देश में सीटों के परिसीमन और इनमें महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के लिए नीति ला सकती है।  

 इसके अलावा वर्तमान चुनावों में बढते खर्च और कालेधन पर लगाम लगाने के लिए चौंकाने वाली ठोस नीति भी सरकार ला सकती है। जिस तरह गत कुछ दशक में चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का प्रयोग कर फर्जी मतदान और बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं को रोकने में कामयाब रहा, उसी तरह आने वाले समय में आश्चर्य नहीं होगा कि प्रत्याशी घर से खाली जेब चुनाव मैदान में आए और जीतकर संसद या विधानसभा में पहुंचे। इस सत्र में सरकार चुनाव के दौरान पार्टी और प्रत्याशी का संपूर्ण खर्च सरकारी धन से करने की भी नीति ला सकती है। ऐसा हुआ तो ये देश की राजनीति में धनबल को रोकने और भ्रष्टाचार के नियंत्रण में क्रांतिकारी निर्णय होगा।

  वन नेशन वन पेंशन नीति को हो सकता है सरकार इन्हीं पांच राज्यों के चुनावों के साथ लागू न करे। लेकिन आगामी समय के लिए इसको लेकर ठोस नीति अवश्य ला सकती है। सरकार ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई है। वह कब तक अपनी रिपोर्ट देगी, यह अभी तय नहीं है। 

सरकार चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर राज्यसभा में पेश किए बिल को भी पास करवाने की कोशिश कर सकती है। इस विधेयक के मुताबिक अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पीएम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। इस कमेटी में मुख्य न्यायाधीश को बाहर करते हुए पीएम के साथ नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री को रखा गया है। 

हालांकि विपक्ष इसको लेकर शुरू से ही आक्रामक है। विपक्ष का कहना है कि सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के निर्णय करती है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने लिखा, “बिना किसी बातचीत के मनमाने ढंग से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। विशेष सत्र से पहले पार्टियों से बात होनी चाहिए थी। सोनिया गांधी ने अपने पत्र में 9 मुद्दों का भी जिक्र किया। महंगाई, बेरोजगारी, सीमा पर चीन का अतिक्रमण और अदानी मामले मंे भी इस सत्र में चर्चा की मांग रखी। 

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोनिया गांधी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है, कि इससे पहले कभी भी किसी सरकार ने सत्र बुलाने से पहले राय मशविरा नहीं किया है। राष्ट्रपति की इजाजत लेकर सत्र बुलाने का काम सरकार का है। आर्टिकल 85 सरकार को विशेष सत्र बुलाने का अधिकार देता है। जोशी ने कहा कि विशेष सत्र बुलाने से पहले एजेंडा सार्वजनिक करने की परंपरा नहीं रही है।  

 

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Pradyumn Sharma: A Dedicated Voice in Journalism Pradyumn Sharma is a prominent journalist known for his significant contributions to the field of journalism through his work with "Styarth Kranti," a media outlet dedicated to spreading awareness about important societal issues. With a keen sense of investigative reporting and a passion for uncovering the truth, Sharma has made a name for himself as a reliable source of information.


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केन्द्र सरकार 18 सितंबर से बुलाए जा रहे संसद के विशेष सत्र में चुनाव में प्रत्याशी और राजनीतिक पार्टियों के खर्च और महिला आरक्षाण को लेकर ठोस नीति ला सकती है। राजनीति के जानकार इस सत्र में यूनीफॉर्म सिविल कोड, नए संसद भवन में कामकाज और वन नेशन वन इलेक्शन की अटकलें लगान के साथ ही इस बात पर पूर्ण आश्वत हैं कि सरकार इस सत्र में जो कुछ करेगी वह क्रांतिकारी कदम होगा।

सरकार ने ऐसे ही विशेष सत्र के दौरान कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया था और तीन कृषि बिल पास करवाए थे। उस समय भी किसी को पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई और न ही एजेंडा सार्वजनिक किया गया। इस सत्र में भी सरकार बडे और नीतिगत फैसले ले सकती है।  

      जानकारों की मानें तो सरकार 2026 की जनगणना के बाद परिसीमन और महिला आरक्षण को लेकर नीति ला सकती है। वर्तमान में देश में औसतन 25 लाख से अधिक जनसंख्या पर एक लोकसभा सीट है। जबकि प्रत्येक सीसदीय क्षेत्र में 15 लाख पर जनसंख्या होनी चाहिए। ऐसे में 2026 की जनगणना के बाद पूरे देश में सीटों के परिसीमन और इनमें महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के लिए नीति ला सकती है।  

 इसके अलावा वर्तमान चुनावों में बढते खर्च और कालेधन पर लगाम लगाने के लिए चौंकाने वाली ठोस नीति भी सरकार ला सकती है। जिस तरह गत कुछ दशक में चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का प्रयोग कर फर्जी मतदान और बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं को रोकने में कामयाब रहा, उसी तरह आने वाले समय में आश्चर्य नहीं होगा कि प्रत्याशी घर से खाली जेब चुनाव मैदान में आए और जीतकर संसद या विधानसभा में पहुंचे। इस सत्र में सरकार चुनाव के दौरान पार्टी और प्रत्याशी का संपूर्ण खर्च सरकारी धन से करने की भी नीति ला सकती है। ऐसा हुआ तो ये देश की राजनीति में धनबल को रोकने और भ्रष्टाचार के नियंत्रण में क्रांतिकारी निर्णय होगा।

  वन नेशन वन पेंशन नीति को हो सकता है सरकार इन्हीं पांच राज्यों के चुनावों के साथ लागू न करे। लेकिन आगामी समय के लिए इसको लेकर ठोस नीति अवश्य ला सकती है। सरकार ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई है। वह कब तक अपनी रिपोर्ट देगी, यह अभी तय नहीं है। 

सरकार चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर राज्यसभा में पेश किए बिल को भी पास करवाने की कोशिश कर सकती है। इस विधेयक के मुताबिक अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पीएम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। इस कमेटी में मुख्य न्यायाधीश को बाहर करते हुए पीएम के साथ नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री को रखा गया है। 

हालांकि विपक्ष इसको लेकर शुरू से ही आक्रामक है। विपक्ष का कहना है कि सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के निर्णय करती है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने लिखा, “बिना किसी बातचीत के मनमाने ढंग से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। विशेष सत्र से पहले पार्टियों से बात होनी चाहिए थी। सोनिया गांधी ने अपने पत्र में 9 मुद्दों का भी जिक्र किया। महंगाई, बेरोजगारी, सीमा पर चीन का अतिक्रमण और अदानी मामले मंे भी इस सत्र में चर्चा की मांग रखी। 

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोनिया गांधी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है, कि इससे पहले कभी भी किसी सरकार ने सत्र बुलाने से पहले राय मशविरा नहीं किया है। राष्ट्रपति की इजाजत लेकर सत्र बुलाने का काम सरकार का है। आर्टिकल 85 सरकार को विशेष सत्र बुलाने का अधिकार देता है। जोशी ने कहा कि विशेष सत्र बुलाने से पहले एजेंडा सार्वजनिक करने की परंपरा नहीं रही है।  

 

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सरकार ने ऐसे ही विशेष सत्र के दौरान कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया था और तीन कृषि बिल पास करवाए थे। उस समय भी किसी को पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई और न ही एजेंडा सार्वजनिक किया गया। इस सत्र में भी सरकार बडे और नीतिगत फैसले ले सकती है।  

      जानकारों की मानें तो सरकार 2026 की जनगणना के बाद परिसीमन और महिला आरक्षण को लेकर नीति ला सकती है। वर्तमान में देश में औसतन 25 लाख से अधिक जनसंख्या पर एक लोकसभा सीट है। जबकि प्रत्येक सीसदीय क्षेत्र में 15 लाख पर जनसंख्या होनी चाहिए। ऐसे में 2026 की जनगणना के बाद पूरे देश में सीटों के परिसीमन और इनमें महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के लिए नीति ला सकती है।  

 इसके अलावा वर्तमान चुनावों में बढते खर्च और कालेधन पर लगाम लगाने के लिए चौंकाने वाली ठोस नीति भी सरकार ला सकती है। जिस तरह गत कुछ दशक में चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का प्रयोग कर फर्जी मतदान और बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं को रोकने में कामयाब रहा, उसी तरह आने वाले समय में आश्चर्य नहीं होगा कि प्रत्याशी घर से खाली जेब चुनाव मैदान में आए और जीतकर संसद या विधानसभा में पहुंचे। इस सत्र में सरकार चुनाव के दौरान पार्टी और प्रत्याशी का संपूर्ण खर्च सरकारी धन से करने की भी नीति ला सकती है। ऐसा हुआ तो ये देश की राजनीति में धनबल को रोकने और भ्रष्टाचार के नियंत्रण में क्रांतिकारी निर्णय होगा।

  वन नेशन वन पेंशन नीति को हो सकता है सरकार इन्हीं पांच राज्यों के चुनावों के साथ लागू न करे। लेकिन आगामी समय के लिए इसको लेकर ठोस नीति अवश्य ला सकती है। सरकार ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई है। वह कब तक अपनी रिपोर्ट देगी, यह अभी तय नहीं है। 

सरकार चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर राज्यसभा में पेश किए बिल को भी पास करवाने की कोशिश कर सकती है। इस विधेयक के मुताबिक अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पीएम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। इस कमेटी में मुख्य न्यायाधीश को बाहर करते हुए पीएम के साथ नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री को रखा गया है। 

हालांकि विपक्ष इसको लेकर शुरू से ही आक्रामक है। विपक्ष का कहना है कि सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के निर्णय करती है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने लिखा, “बिना किसी बातचीत के मनमाने ढंग से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। विशेष सत्र से पहले पार्टियों से बात होनी चाहिए थी। सोनिया गांधी ने अपने पत्र में 9 मुद्दों का भी जिक्र किया। महंगाई, बेरोजगारी, सीमा पर चीन का अतिक्रमण और अदानी मामले मंे भी इस सत्र में चर्चा की मांग रखी। 

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोनिया गांधी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है, कि इससे पहले कभी भी किसी सरकार ने सत्र बुलाने से पहले राय मशविरा नहीं किया है। राष्ट्रपति की इजाजत लेकर सत्र बुलाने का काम सरकार का है। आर्टिकल 85 सरकार को विशेष सत्र बुलाने का अधिकार देता है। जोशी ने कहा कि विशेष सत्र बुलाने से पहले एजेंडा सार्वजनिक करने की परंपरा नहीं रही है।  

 

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सरकार ने ऐसे ही विशेष सत्र के दौरान कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया था और तीन कृषि बिल पास करवाए थे। उस समय भी किसी को पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई और न ही एजेंडा सार्वजनिक किया गया। इस सत्र में भी सरकार बडे और नीतिगत फैसले ले सकती है।  

      जानकारों की मानें तो सरकार 2026 की जनगणना के बाद परिसीमन और महिला आरक्षण को लेकर नीति ला सकती है। वर्तमान में देश में औसतन 25 लाख से अधिक जनसंख्या पर एक लोकसभा सीट है। जबकि प्रत्येक सीसदीय क्षेत्र में 15 लाख पर जनसंख्या होनी चाहिए। ऐसे में 2026 की जनगणना के बाद पूरे देश में सीटों के परिसीमन और इनमें महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के लिए नीति ला सकती है।  

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  वन नेशन वन पेंशन नीति को हो सकता है सरकार इन्हीं पांच राज्यों के चुनावों के साथ लागू न करे। लेकिन आगामी समय के लिए इसको लेकर ठोस नीति अवश्य ला सकती है। सरकार ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई है। वह कब तक अपनी रिपोर्ट देगी, यह अभी तय नहीं है। 

सरकार चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर राज्यसभा में पेश किए बिल को भी पास करवाने की कोशिश कर सकती है। इस विधेयक के मुताबिक अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पीएम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। इस कमेटी में मुख्य न्यायाधीश को बाहर करते हुए पीएम के साथ नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री को रखा गया है। 

हालांकि विपक्ष इसको लेकर शुरू से ही आक्रामक है। विपक्ष का कहना है कि सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के निर्णय करती है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने लिखा, “बिना किसी बातचीत के मनमाने ढंग से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। विशेष सत्र से पहले पार्टियों से बात होनी चाहिए थी। सोनिया गांधी ने अपने पत्र में 9 मुद्दों का भी जिक्र किया। महंगाई, बेरोजगारी, सीमा पर चीन का अतिक्रमण और अदानी मामले मंे भी इस सत्र में चर्चा की मांग रखी। 

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोनिया गांधी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है, कि इससे पहले कभी भी किसी सरकार ने सत्र बुलाने से पहले राय मशविरा नहीं किया है। राष्ट्रपति की इजाजत लेकर सत्र बुलाने का काम सरकार का है। आर्टिकल 85 सरकार को विशेष सत्र बुलाने का अधिकार देता है। जोशी ने कहा कि विशेष सत्र बुलाने से पहले एजेंडा सार्वजनिक करने की परंपरा नहीं रही है।  

 

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