महिला आरक्षण विधेयक पेश, आज हो सकता है पास
-लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की सीटों हो जाएगी एक तिहाई
-2026 की जनगणना के बाद 2029 से हो सकता है लागू
नई दिल्ली। महिला आरक्षण बिल को केंद्र सरकार लोकसभा में मंगलवार को विशेष सत्र के दौरान पेश कर दिया है। राज्यसभा मंे बुधवार को लाया जा सकता है। यह बिल पास होने के बाद लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं सुरक्षित हो जाएगी। यह संविधान का 128 वां संशोधन है जो 2010 में राज्यसभा में पास हो चुका था। इस बार पुराने विधेयक के स्वरूप में कुछ बदलाव संभव है।
मोदी सरकार की कैबिनेट ने इस बिल को सोमवार को मंजूरी दे चुकी है। संसद के विशेष सत्र के दौरान मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। जिस पर बुधवार को चर्चा के बाद राज्य सभा में पेश किया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि ये महिला आरक्षण 2024 के बजाय 2026 की जनगणना के बाद 2029 के चुनावों से लागू होगा। यह बिल सबसे पहले 1996 में पेश किया गया था। इसके बाद 2010 में भी राज्यसभा ने इसे पास कर दिया था। लेकिन तब लोकसभा में पास नहीं हो पाया।
मंगलवार को सदन में पेश होने के बाद बुधवार को बहस की जाएगी। इसके बाद राज्यसभा में बुधवार को या विशेष सत्र के दौरान अंतिम दिन शुक्रवार को पास किया जा सकता है।
अभी केवल 78 महिला सांसद
लोकसभा की 543 सीटों में फिलहाल 78 महिला सांसद ही है। जबकि 238 सीटों वाली राज्यसभा में सिर्फ 31 महिला सांसद है। इसी तरह राज्यों की विधानसभाओं में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। छत्तीसगढ़ विधानसभा में 14 फीसदी, पश्चिम बंगाल विधानसभा में 13.7 फीसदी,
झारखंड विधानसभा में केवल 12.4 फीसदी महिला विधायक है। वहीं बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली विधानसभाओं में भी मात्र 10-12 प्रतिशत महिला विधायक हैं। जबकि आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा में तो महिला विधायकों की संख्या 10 फीसदी से कम है।
महिला आरक्षण बिल का इतिहास
1975 में टूवर्ड्स इक्वैलिटी नाम की एक रिपोर्ट के बाद महिलाओं की हिस्सेदारी के बारे में विचार शुरू हुआ। 1980 के दशक में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण का विधेयक पारित करने की कोशिश हुई लेकिन विधानसभाओं ने इसका विरोध किया। इसके बाद 1996 में यह विधेयक पेश करने का प्रयास हुआ लेकिन देवगौडा की गठबंधन सरकार में सहयोगी मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद ने इसका विरोध किया। इसके बाद 1997 और 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के दौरान इसे पेश करने की कोशिश हुई। एनडीए सरकार ने ही 13 वीं लोकसभा में फिर 1999 में इसे पेश करने का प्रयास किया। साल 2003 में भी एनडीए सरकार के दौरान प्रश्नकाल में ही सांसदों ने जमकर हंगामा किया। इसके बाद 2010 में राज्यसभा में यह विधेयक पारित हो गया लेकिन लोकसभा में पास नहीं हो पाया। जानकरों के अनुसार इस बाद 2010 में पारित विधेयक के मसौदे से इस विधेयक में कुछ भिन्नता हो सकती है।
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