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मस्जिद कमेटी नहीं मुलायम सरकार ने रोका था व्यासजी के तहखाने में पूजापाठ

-हाईकोर्ट ने कमेटी की अपील को खारिज करने का मामले की इनसाइड स्टोरी

विशेष संवाददाता

प्रयागराज। ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिन्दुओं को ही पूजा जारी रखने का फैसला प्रयागराज हाईकोर्ट ने सोमवार को दिया, यह तहखाना पीढियों से व्यास परिवार के पास ही रहा। विवाद को जन्म 1993 में मुलायम सरकार ने दिया।

 वर्ष 1993 में तत्कालीन मुलायम सिंह की राज्य सरकार ने मौखिक आदेश देकर व्यास परिवार और अन्य हिंदू समाज को यहां पूजा करने पर रोक लगा दी। जिसके बाद ये प्रकरण अदालत में विचाराधीन था। जिसमें गत दिनों जिला अदालत ने हिन्दुओं को यहाँ पूजा करने की इजाजत दी थी। जिसके खिलाफ अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमिटी ने हाईकोर्ट में यह अपील की जिसे हाईकोर्ट ने सोमवार को खारिज कर दिया है।

दरअसल मस्जिद के जिस हिस्से में पूजा हो रही है, उसे श्व्यासजी का तहखाना कहा जाता है। सूत्रों के अनुसार 1993 में जब उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार ने जब व्यास परिवार को यहां पूजा बंद करने का मौखिक आदेश दिया तो व्यास परिवार ने इस पर अपना अधिकार होने का दावा किया था। 

 

व्यास परिवार का कहना है कि व्यासजी का तहखाना 1551 में उनके पास रहा है और 1993 में उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर बंद किए जाने तक लगातार यहाँ पूजा हो रही थी। जब वाराणसी जिला अदालत ने इस साल 31 जनवरी को तहखाने में पूजा करने की अनुमति दे दी तोे  मस्जिद की प्रबंधक कमिटी ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। 

कमेटी ने दलील दी कि दीन मोहम्मद बनाम भारत सरकार के सचिव (1937) मामले में सिविल कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया हुआ है कि यह मस्जिद हनफी मुस्लिम वक्फ की संपत्ति है। मस्जिद के नीचे की जमीन और तहखाने पर मुसलमानों का अधिकार है। प्रबंधक कमिटी ने उपासना स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) 1991 के अनुच्छेद चार का भी हवाला दिया था। यह प्रावधान कहता है कि किसी भी उपासना स्थल का जो धार्मिक चरित्र 15 अगस्त 1947 को था, उसे बदला नहीं जा सकता।

कमिटी की दलील थी कि दीन मोहम्मद मामले में कोर्ट का फैसला अंतिम है और व्यास परिवार को तहखाने में पूजा का अधिकार देकर मस्जिद का धार्मिक चरित्र नहीं बदला जा सकता।

 

दूसरी ओर व्यास परिवार ने भी यही दलील दी कि दीन मोहम्मद मामले में आया आदेश वास्तव में उनके ही पक्ष में था। उन्होंने भारत के सचिव की ओर से दाखलि नक्शे को आधार बनाते हुए कहा कि प्राचीन नक्शे में यह जगह को स्पष्ट तौर पर व्यासजी का तहखाना के तौर पर लिखा हुआ है। इस नक्शे पर कभी कोई विवाद नहीं हुआ। यह तहखाना परिवार के ही कब्जे में ही रहा।

उन्होंने यह भी दावा किया कि मस्जिद का व्यासजी के तहखाने पर कभी कब्जा नहीं रहा और राज्य सरकार को परिवार को वहां पूजा करने से नहीं रोकना चाहिए था। उन्होंने भी उपासना स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि राज्य सरकार की ओर से पूजा करने से रोके जाने पर तहखाने का धार्मिक चरित्र बदल गया, जहां कि लगातार पूजा हो रही थी।

कोर्ट ने कहा सरकार की कार्रवाई गलत थी

हाईकोर्ट ने तथ्यों की प्रथम दृष्टया पड़ताल के बाद प्रतिवादियों के पक्ष में अंतरिम आदेश जारी किया है। इसमें लिखा गया है कि व्यास परिवार के स्वामित्व वाले तहखाने का 1937 में अस्तित्व होने का सबूत है। इसके बाद उनका 1993 तक यहां लगातार कब्जा होने का भी प्रमाण है। 

कोर्ट ने कहा कि “प्रथम दृष्टया राज्य सरकार द्वारा 1993 में व्यास परिवार और श्रद्धालुओं को पूजा और अनुष्ठान करने से रोका जाना गलत कार्रवाई थी।

 

 

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