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मलदीव पर बढ रहा है ड्रेगन का शिकंजा, सत्ता बदलते ही बदले तेवर

-श्रीलंका, जिबूती और पाकिस्तान की तरह मालदीव पर है निगाहें

-नए राष्ट्रपति मुइज्जू के भारत विरोधी तेवर 

नई दिल्ली (एजेंसी)। मालदीव मंे हुए चुनाव में चीन समर्थक सरकार बनने से भारत की सुरक्षा के लिए नया खतरा बढ गया है। मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के हालिया तेवर भारत के साथ खुद मालदीव के लिए भी चिंता बढाने वाले है।  

भारत के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को मालदीव के राष्ट्रपति के बयान पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है।  भारत ने कहा है कि मालदीव की नई सरकार के साथ भारत हर मुद्दे पर बात करने को उत्सुक है। मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू नेे बयान दिया था भारतीय सेना के कर्मियों को मालदीव छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस पर प्रतिक्रया दी कि भारत के उच्चायुक्त मुनु महावर ने मोहम्मद मुइज्जू से मुलाकात की थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बधाई संदेश सौंपा। लेकिन यह नहीं बताया कि मोहम्मद मुइज्जू के शपथ ग्रहण समारोह भारत का प्रतिनिधित्व कौन करेगा।  मालदीव के राष्ट्रपति के इस बयान से मालदीव के चीन की ओर झुकाव के संकेत मिल रहे हैं जो न केवल भारत बल्कि खुद मालदीव के लिए आत्मधाती साबित हो सकते हैं।

चीन के लिए मालदीव सामरिक रूप से काफी अहम ठिकाना है। मालदीव रणनीतिक रूप से जिस समुद्री ऊंचाई पर है, वो काफी अहम है। चीन की मालदीव में मौजूदगी हिंद महासागर में उसकी रणनीति का हिस्सा है। 2016 में मालदीव ने चीनी कंपनी को एक द्वीप 50 सालों की लीज महज 40 लाख डॉलर में दे दिया था। दूसरी तरफ मालदीव भारत के बिल्कुल पास है। लक्षद्वीप से मालदीव करीबी 700 किलोमीटर और भारत के मुख्य भूभाग से 1200 किलोमीटर दूर है। वहाँ चीन पैर जमाता है तो भारत के लिए चिंतित होना स्वभाविक है। मालदीव चीन और पाकिस्तान की वन बेल्ट वन रोड का भी खुलकर समर्थन कर रहा है। अगर भारत से मालदीव से दूर होता है तो दक्षिण एशिया के बाकी छोटे देशों में भी चीन का प्रभाव बढ़ेगा।

भारत ने कई बार की सहायता, 2018 से कडवाहट

मालदीव छोटा द्वीप समूह है जिसकी सुरक्षा में भारत की अहम भूमिका रही है। 1988 में राजीव गांधी ने सेना भेजकर मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। 2018 में जब मालदीव के लोग पेय जल की समस्या से जूझ रहे थे तो प्रधानमंत्री मोदी ने पानी भेजा था। इसके बाद मोदी सरकार ने मालदीव को कई बार आर्थिक संकट से निकालने के लिए कर्ज भी दिया। लेकिन  2018 में सबसे ज्यादा कड़वाहट आई है। इसकी शुरुआत मालदीव सुप्रीम कोर्ट के 2018 में एक फैसले से हुई। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा विपक्ष के नेताओं को कैद करवाने को संविधान और अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन बताया और आदेश दिया कि सरकार पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद समेत सभी विपक्षी नेताओं को रिहा किया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने मानने से इनकार करते हुए आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह आपातकाल 45 दिनों तक चला।  भारत ने इस आपातकाल का विरोध किया और आपातकाल को तत्काल खत्म करने की वकालत की।

इसी बीच यामीन ने चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब में अपने दूत भेजे जिसके बाद चीन ने चेतावनी दी कि मालदीव के आंतरिक मामले में किसी भी देश को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। चीन ने कहा था कि मालदीव की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। दूसरी तरफ मालदीव के विपक्षी नेता नाशीद चाहते भारत से सैन्य हस्तक्षेप की भी उम्मीद कर रहे थे। ताकि जजों को हिरासत से मुक्त कराया जा सके। नाशीद ने अमेरिका से भी मदद की गुहार लगाई। इस बीच चीन ने अपने युद्धपोत मालदीव की ओर भेजे जिसकी भारतीय नेवी ने भी पुष्टि की। हालांकि चीनी युद्धपोत की हिंद महासागर में तैनाती कोई नहीं बात नहीं है। चीन का जिबुती में पहले से ही एक सैन्य ठिकाना है.

चीन समर्थक हैं मुइज्जू

पिछले हफ्ते हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे को भारत के खिलाफ देखा जा रहा है। इब्राहिम सोलिह को भारत के हितों के खलिाफ नहीं जाने वाले राष्ट्रपति के तौर पर देखा जाता था। जबकि मुइज्जू के चुनावी अभियान में भारत विरोध अहम मुद्दा था। उन्होंने ही इंडिया आउट कैंपेन भी चलाया। मुइज्जू का कहना था कि उनकी सरकार मालदीव की संप्रभुता से समझौता कर किसी देश से करीबी नहीं बढ़ाएगी। जबकि राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद कहा कि लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के सैनिकों की मौजूदगी मालदीव में हो। विदेशी सैनिकों के मालदीव की जमीन से जाना होगा। इधर हिन्द महासागर में भारत की सैन्य मौजूदगी कोई नई बात नहीं है। अब्दु और लम्मू द्वीप में 2013 से ही भारतीय नौ सैनिकों और एयरफोर्स कर्मियों की मौजूदगी रही है। मालदीव में कुल 75 भारतीय सैन्यकर्मी मौजूद हैं।

 

 

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Pradyumn Sharma: A Dedicated Voice in Journalism Pradyumn Sharma is a prominent journalist known for his significant contributions to the field of journalism through his work with "Styarth Kranti," a media outlet dedicated to spreading awareness about important societal issues. With a keen sense of investigative reporting and a passion for uncovering the truth, Sharma has made a name for himself as a reliable source of information.


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