katchatheevu island : भारत और श्रीलंका के बीच इस टापू का जानिए इतिहास, जो बन गया लोकसभा चुनाव का बड़ा मुद्दा
katchatheevu island
भारत के रामनाथपुरम राज्य का हिस्सा था कच्छतीवु
बंगाल की खाडी को अरब सागर से जोड़ता है
भारत और श्रीलंका के बीच जलडमरू मध्य में 235 एकड़ का टापू है जो कच्छतीवु katchatheevu island के नाम से जाना जाता है। इसकी विशेषता है कि ये बंगाल की खाडी को अरब सागर से जोड़ता है। इस जलडमरूमध्य का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर रखा गया था जो 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत का गवर्नर था। यहां मूंगे की चट्टानों और रेतीली चट्टानों की प्रचुरता के कारण बड़े जहाज़ इस क्षेत्र से नहीं जा सकते। जानकारी के मुताबिक़, 20 वीं सदी की शुरुआत में रामनाथपुरम ( रामनाड के राजा ) ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया था और थंगाची मठ के एक पुजारी इस मंदिर में पूजा करते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने इस द्वीप पर कब्ज़ा कर लिया। हर साल फरवरी-मार्च में यहां एक हफ़्ते तक पूजा पाठ होती है। 1983 में श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान ये पूजा पाठ बाधित हो गई थी। सेंट एंटनी चर्च भी इसी निर्जन द्वीप पर है।
मालगुज़ारी के रूप में रामनाथपुरम के राजा का जो दस्तावेज़ मिलता है उसके हिसाब-किताब में कच्छतीवु द्वीप katchatheevu island भी शामिल था। रामनाथपुरम के राजा ने द्वीप के चारों ओर मछली पकड़ने का अधिकार, द्वीप पर पशु चराने का अधिकार और अन्य उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग करने का अधिकार पट्टे पर दिया था। दोनों देशों के बीच लंबे समय तक इस द्वीप को लेकर विवाद रहा और इसी बीच 1974 में भारत ने श्रीलंका को द्वीप दे दिया।
साल 1974 से 1976 की अवधि के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति सिरीमावो भंडारनायके के साथ चार सामुद्रिक सीमा समझौते किए थे। इन्हीं समझौते के तहत ये टापू katchatheevu__island श्रीलंका के अधीन चला गया। लेकिन तमिलनाडु की सरकार ने इस समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मांग की थी कि ये टापू श्रीलंका से वापस लिया जाए। इसके साथ यही दलील दी जाती रही कि ये टापू रामनाथपुरम के राजा की ज़मींदारी के तहत आता था। रामनाथपुरम के राजा को कच्छतीवु का नियंत्रण 1902 में तत्कालीन भारत सरकार से मिला था।
मोदी modi मेरठ में बोले
तमिलनाडु के पास पड़ने वाला कच्छतीवु द्वीप को लेकर लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति तेज़ हो गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी pm modi ने रविवार को ये कहते हुए कांग्रेस पर हमला बोला कि कांग्रेस ने भारत की एकता को कमज़ोर किया। उन्होंने मेरठ में हुई चुनावी रैली में कहा कि कांग्रेस congress का एक और देश विरोधी कारनामा सामने आया है। तमिलनाडु में समुद्री तट से कुछ किलोमीटर दूरी पर तमिलनाडु और श्रीलंका shreelanka के बीच में समुद्र में कच्छतीवु टापू है, जो सुरक्षा की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण है। ये देश की आज़ादी के समय भारत के साथ था। लेकिन चार-पांच दशक पहले इन लोगों ने कह दिया कि ये द्वीप फालतू है, ज़रूरी ही नहीं है। इस तरह इंडी अलायंस के गठबंधन के लोगों ने मां भारती का एक अंग काटकर श्रीलंका को दे दिया। ये जानकारी तमिलनाडु के बीजेपी चीफ़ के. अन्नामलाई ने आरटीआई दायर की थी जिसके जवाब में सामने आयी।
जयशंकर ने पीसी में उठाया
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कच्छतीवु द्वीप पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जयशंकर ने मीडिया से बात करते हुए कहा डीएमके और कांग्रेस ने ऐसे बर्ताव किया है कि सब कुछ अब केंद्र सरकार के हाथ में है और उन्होंने कुछ किया ही नहीं। जैसे ये सबकुछ अब हो रहा है और इसका कोई इतिहास नहीं है। इस पर बात इसलिए हो रही है क्योंकि लोगों को जानना चाहिए कि ये विवाद शुरू कैसे हुआ। इस द्वीप को लेकर संसद में कई बार सवाल पूछे गए हैं। जयंशंकर ने कहा मैंने खुद 21 बार तमिलनाडु सरकार को जवाब दिया है। जून 1974 में विदेश सचिव और तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि के बीच बात हुई। कच्छतीवु पर भारत और श्रीलंका के अपने अपने दावे हैं।
तमिलनाडु कहता है कि ये राजा रामनाथ की रियासत थी। भारत का कहना है कि ऐसा कोई भी दस्तावेज़ नहीं है जिससे ये दावा हो कि कच्छतीवु श्रीलंका का हिस्सा रहा है। 1960 के दौर से ये मुद्दा शुरू हुआ। 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ और मैरीटाइम सीमा दोनों देशों के बीच तय की गई।
तमिलनाडु के बीजेपी चीफ ने किया खुलासा
तमिलनाडु के बीजेपी चीफ के अन्नामलाई, कच्छतीवु द्वीप से जुड़ी जानकारियों को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत RTI सामने लाए हैं। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में कहा गया है कि ढुलमुल रवैये के चलते इस द्वीप को लेकर भारत, श्रीलंका के सामने हार गया।
क्या लिखा टाइम्स ऑफ इंडिया ने
टाइम्स ऑफ इंडिया ने रविवार को प्रमुखता से इस मामले को छापा।. रिपोर्ट में कहा कि दस्तावेज़ों से पता चलता है कि भारतीय तट से करीब 20 किलोमीटर दूर 1.9 वर्ग किलोमीटर भूमि पर भारत ने ऐसे टापू पर अपना दावा छोड़ दिया जिस पर दशकों तक भारत अपना दावा करता रहा। लेकिन फिर इसे जाने दिया।
श्रीलंका shreelanka का ये है दावा
रिपोट के मुताबिक श्रीलंका को अंगेजी शासन में सीलोन कहा जाता था। उसने साल 1948 में आज़ादी के ठीक बाद इस द्वीप पर अपना दावा किया। तब उसने भारतीय नौसेना (तब रॉयल इंडियन नेवी) के वहां अभ्यास करने पर आपत्ति करते हुए कहा कि उसकी अनुमति के बिना कच्छतीवु पर अभ्यास नहीं किया जा सकता। इसके बाद अक्टूबर, 1955 में सीलोन की एयर फोर्स ने इस द्वीप पर अभ्यास किया।
Nehru नेहरू ने कहा छोटे टापू को महत्व नहीं देते
अखबार कहता है कि 10 मई, 1961 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मुद्दे को अप्रासंगिक कहकर खारिज कर दिया था। नेहरू ने लिखा था कि उन्हें इस द्वीप पर अपना दावा छोड़ने में कोई झिझक नहीं होगी। अखबार के मुताबिक़ पीएम नेहरू ने लिखा कि वे इस छोटे से द्वीप katchatheevu island को बिल्कुल भी महत्व नहीं देते और इस पर अपना दावा छोड़ने में भी उन्हें कोई परेशानी नहीं है। उन्होंने तब कहा था कि वे अनिश्चित काल तक इस मुद्दे को लंबित रखने और संसद में दोबारा उठाए जाने के पक्ष में नहीं हैं। अखबार के मुताबिक नेहरू की ये बातें उस नोट का हिस्सा हैं, जिसे तत्कालीन राष्ट्रमंडल सचिव वाईडी गुंडेविया ने तैयार किया था। इस नोट को विदेश मंत्रालय ने 1968 में संसद की अनौपचारिक सलाहकार समिति के साथ साझा किया था।
अख़बार के मुताबिक़, यह नोट कच्छतीवु के प्रति तत्कालीन नेताओं के ढुलमुल रवैये को दिखाता है। इसके बाद 1974 में भारत ने औपचारिक रूप से इस द्वीप पर अपना दावा छोड़ दिया।
रामनाथपुरम के राजा के अधिकार में था
अखबार के मुताबिक 1960 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ की राय थी कि katchatheevu island कच्छतीवु पर भारत का मज़बूत दावा है। सबूतों के मूल्यांकन से प्रतीत होता है कि द्वीप की संप्रभुता भारत के साथ है। इसके लिए उन्होंने ज़मींदारी से जुड़े अधिकारों का उदाहरण दिया था। उनका कहना था कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने रामनाथपुरम के राजा को टापू और उसके आसपास मछली पालन और अन्य संसाधनों के लिए ज़मींदारी अधिकार दिए थे। ये अधिकार 1875 से लेकर 1948 तक चलते रहे। बाद में जब ज़मींदारी अधिकार खत्म हुए तो वे मद्रास राज्य में निहित हो गए।
कांग्रेस ने भी दिए जवाब
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी के आरोपों की टाइमिंग पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि क्या पीएम मोदी ने चीन को क्लीन चिट दे दी है जिसकी वजह से भारत के 20 जवानों ने गलवान में बलिदान दिया। खड़गे ने कहा कि 1974 में एक श्दोस्ताना समझौते के तहत ये द्वीप दिया गया था। ठीक उसी तरह जिस तरह मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ ‘बॉर्डर एनक्लेव को लेकर’ एक समझौता किया। खड़गे ने एक्स पर साल 2015 में पीएम मोदी के बयान का ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि “भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा समझौता सिर्फ ज़मीन के रिअलाइनमेंट के बारे में नहीं है, यह दिलों के मिलन के बारे में है। मोदी सरकार में दोस्ताना भाव में 111 एनक्लेव बांग्लादेश को दे दिए गए और 55 एनक्लेव भारत के पास आए। ये उस समाय हुआ जब एक अगस्त 2015 को भारत और बांग्लादेश के बीच 162 एनक्लेव (सीमा पर पड़ने वाले छोटे इलाक़े) की अदला-बदली हुई थी।
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