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डीप सी माईनिंग में भारत के कदम, अक्षय उर्जा में बड़ा लक्ष्य

( deep_sea mining ) Renewable energy 

अक्षय उर्जा से 2030 तक 50 प्रतिशत जरूरत पूरी करने का लक्ष्य  

भारत अक्षय उर्जा ( Renewable energy  )के क्षेत्र में पूरी दुनिया में अपना दबदबा कायम करने की दिशा में पूरी ताकत से प्रयासरत है। समुद्र की गहराईयों में छिपे खनिजों को निकालने के लिए भारत ने हाल ही में दो डीप-सी एक्सप्लोरेशन लाइसेंस के लिए आवेदन किया है। ये खनिज सौर उर्जा और ई-वाहनों में बेहद जरूरी बताते जाते है। भारत का ये कदम स्वच्छ उर्जा की ओर बढते कदम और मजबूत इरादों का संकेत माना जा रहा है। 

भारत के पास हिंद-महासागर में दो डीप-सी एक्सप्लोरेशन ( deep_sea mining ) लाइसेंस पहले से ही है। इन खनिज पदार्थों को स्वच्छ उर्जा के भविष्य की ओर एक अहम माना जाता है। इन खनिजों को हासिल करने के लिए वैश्विक ताक़तों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता के बीच भारत ने दो अतिरिक्त लाइसेंस के लिए आवेदन किया है। चीन, रूस और भारत जैसे देश इस स्पर्धा में पहले से है। ये देश समुद्र स्तर से हज़ारों मीटर नीचे मौजूद कोबाल्ट, निकल, कॉपर और मैंगनीज़ जैसे खनिजों के दोहन की कोशिश कर रहे हैं। भारत सरकार भी समंदर की अथाह गहराइयों में छिपे कुछ ख़ास खनिज पदार्थों को तलाशने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है।

जलवायु परिवर्तन में अहम

( deep_sea mining इन खनिजों का इस्तेमाल Renewable energy  सौर ऊर्जा solar  energy , पवन शक्ति wind energy , बिजली से चलने वाली गाड़ियां और बैटरी तकनीक जैसे नवीनकरणीय ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने के लिए किया जाता है। जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए ये खनिज बेहद ज़रूरी है। इस तकनीक से स्वच्छ उर्जा Renewable energy  को बढावा मिलने पर विश्व में कोयला व परमाणु उर्जा आधारित विद्युत उत्पादन में कमी आएगी। जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी।  

रूस चीन से होड

समुद्र तल में खनन के मामले में भारत की होड चीन और रूस से है। संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध संस्था इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी ने अब तक 31 एक्सप्लोरेशन लाइसेंस दिए हैं। जिनमें से 30 लाइसेंस सक्रिय है। इस संस्था के सदस्य देश इसी हफ़्ते जमैका में खनन के लाइसेंस देने से जुड़े नियमों पर बातचीत करने के लिए जमा होंगे। अगर भारत को दो नए लाइसेंस मिलते है तो उसके लाइसेंस की संख्या चार हो जाएगी जो कि रूस के बराबर और चीन से एक कम होगी। 

पॉलिमैटेलिक सल्फ़ाइड का खनन

( deep_sea mining )भारत का मक़सद पॉलिमैटेलिक सल्फ़ाइड का खनन करना है। खनिज पदार्थ हिंद महासागर के मध्य क्षेत्र की कार्ल्सबर्ग रिज़ के हाइड्रोथर्मल वेंट्स के पास मौजूद हैं। इसमें ताँबा, जस्ता, सोना और चाँदी भी मौजूद है। भारत, चीन, जर्मनी और दक्षिण कोरिया के पास पहले ही हिंद महासागर के रिज़ एरिया में पॉलिमैटेलिक सल्फ़ाइड तलाशने के लिए लाइसेंस हैं। भारत के राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ने 2022 में हिंद महासागर के मध्य क्षेत्र में 5720 मीटर की गहराई पर माइनिंग मशीनरी की टेस्टिंग करके कुछ पॉलिमैटेलिक नॉड्यूल्स को हासिल किया था। ये मैंगनीज़, कोबाल्ट, निकल और तांबा से युक्त गोल पत्थर होते हैं जो कि समुद्र की तलहटी में पाए जाते हैं। 

डीप सी माईनिंग ( deep_sea mining ) का विरोध भी

कुछ देश डीप सी माईनिंग का विरोध भी कर रहे हैं। ब्रिटेन, जर्मनी, ब्राज़ील और कनाडा समेत दुनिया भर के लगभग दो दर्जन देश डीप-सी माइनिंग पर स्थाई या अस्थाई रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। इनका कहना है कि जब तक समुद्री क्षेत्र के इकोसिस्टम के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं होती तब तक ऐसे खान पर रोक लगनी चाहिए। जबकि एक अनुमान के मुताबिक स्वच्छ ऊर्जा की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए साल 2050 तक इन खनिजों को निकालने की दर पांच गुना तक बढ़ानी होगी।

भारत का लक्ष्य 2030 तक 50 प्रतिशत

भारत सरकार साल 2030 तक अपनी रिन्यूएबल एनर्जी Renewable energy  की क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाना चाहती है। भारत अपनी कुल ऊर्जा ज़रूरतों का पचास फीसदी स्वच्छ ऊर्जा स्रोत से करना चाहता है। जबकि 2070 अपनी ज़रूरत को स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से पूरा करना चाहता है।

ये देश हैं आगे

ज़मीन पर इन खनिजों के खनन ( deep_sea mining  के मामले में ऑस्ट्रेलिया लीथियम, चिली ताँबे, चीन ग्रेफ़ाइट और मोबाइल-कंप्यूटर में इस्तेमाल किए जाने वाले खनिज का खनन करने में आगे हैं। लेकिन इन खनिजों की प्रोसेसिंग में चीन का प्रभुत्व है। चीन कई दशकों से प्रोसेसिंग तकनीक का महारथी है। चीन सत्तर फीसद कोबाल्ट और लगभग साठ फीसदी लीथियम और मैंगनीज़ की प्रोसेस्ड मात्रा नियंत्रित करता है।

 

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