भारत की सात हजार साल पुरानी थैरेपी, दर्द का करती है मिनटों में इलाज
Agnikarm
Aayurveda
- joint pain घुटनों का दर्द, साइटिका, सर्वाइकल दर्द में रामबाण
-अग्निकर्म चिकित्सा की बढ़ रही लोकप्रियता
-पेनकिलर और एन्टीबायोटिक के बगैर joint pain दर्द से मुक्ति
झालावाड। ग्रामीण इलाकों में आधे अधूरे जानकरों के कारण बदनाम हो चुकी अग्निकर्म चिकित्सा (दाह चिकित्सा) दरअसल भारत की पांच हजार साल पुरानी ऐसी अचूक Aayurveda चिकित्सा पद्धति है जो बिना ड्रग्स और एन्टीबायोटिक दिए रोगी को joint pain जोडांे और मांसपेशियों के दर्द joint pain से कुछ ही मिनटों में मुक्ति दिलाती है। समय के साथ इस चिकित्सा पद्धति में जहां नए शोध हो रहे हैं वहीं रोगियों में इसके प्रति जागरूकता बढ रही है।
झालावाड के विजयाराजे खेल संकुल में चार दिवसीय Aayurveda आरोग्य मेला मंगलवार से शुरू हुआ। जिसमें आए राजस्थान के प्रथम अग्निकर्म एवं रक्त मोक्षण विशेषज्ञ डाॅ सौरभ सिंह हाडा ने बताया कि यह चिकित्सा पद्धति ईसा से पांच हजार साल पुरानी है। जिसका वर्णन शल्य चिकित्सा के जनक सुश्रत संहित में मिलता है। जिन रोगों का उपचार सर्जरी और साल्ट नहीं कर पाते उसमें अग्निकर्म थैरेपी कारगर साबित होती है। अग्निकर्म को आयुर्वेद का ब्रह्मास्त्र कहा जाता है जो कफ और वात रोगों में कारगर है।
यह एक तरह का pain management है जो बिना पेन किलर और एन्टीबायोटिक के तुरंत रिजल्ट देती है। जबकि दर्द से राहत दिलाने के लिए ऐलोपैथी चिकित्सा पद्धति में ड्रग्स का उपयोग किया जाता है। जो रोगी के लिए आगे जाकर नुकसान देह साबित होता है। यह joint pain कमर दर्द, घुटनों के दर्द, कंधा, सर्वाइकल के अलावा पैरों में हुई कीलों और मस्से के उपचार में कारगर साबित होती रही है।
क्या है अग्निकर्म
Aayurvedaअग्निकर्म थैरेपी में जिन अंगों में पीडा होती है वहां विभिन्न प्रकार की गर्म धातुओं से दाह लगाया जाता है। इसके लिए लोहे, तांबा, सोना, चांदी सहित अष्ट और पंच धातु की छडों का प्रयोग किया जाता है। यह दाह उस स्थान पर लगाया जाता है जहां पुराना दर्द होता है। गर्म धातु के स्पर्ष से उस अंग पर जमे पुराने रक्त, मृत कोशिकाओं सहित अस्थियों के बीच जमे पुराने वसा को नष्ट किया जाता है। जिससे वहां नए का संचार बढ जाता है और नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। इस पद्धति से अधिकांश मामलों में हमेशा के लिए रोग से मुक्ति पाई जा सकती है।
सही ज्ञान के अभाव में बदनाम
यह चिकित्सा पद्धति आज भी गांवों में पाई जाती है लेकिन इसके बारे में सही जानकारी नहीं होने से यह चिकित्सा पद्धति बदनाम हो गई। आधी अधूरी जानकारी के कारण ग्रामीण इलाकों में कई लोग गहरे दाह लगाकर रोगियों की जान जोखिम में डाल देते हैं। अंगे्रजों के कार्यकाल में भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की उपेक्षा की गई और उन्हें पढने पढाने और आगे बढाने की व्यवस्था समाप्त हो गई। जिससे यह ग्रामीण इलाकों में अशिक्षित लोगों तक अपूर्ण जानकारी के साथ सिमट कर रह गई।
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