राजस्थान की ऐसी संसदीय सीट जहां से जनसंघ ने पैर जमाए, आज भी दबदबा कायम
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-अब तक हुए 17 चुनावों में कांग्रेस को केवल चार पर मिली जीत
झालावाड। राजस्थान की कोटा-बूंदी ही ऐसी लोकसभा सीट है जहां भारतीय जनसंघ ने अपने संघर्षकाल में दूसरी सीट जीतकर राजस्थान में अपने पैर जमाए। 1962 में जनसंघ ने यहां से अपना दूसरा सांसद जिताकर भेजा उसके बाद अपने सामने कांग्रेस को टिकने ही नहीं दिया। आजादी के बाद हुए 17 चुनावों में कांग्रेस केवल चार चुनाव ही यहां से जीत पाई। इस बार भाजपा ने यहां से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला को फिर मैदान में उतारकर कांग्रेस के सामने बडी चुनौती पेश की है।
कोटा-बूंदी लोकसभा सीट पर भाजपा के ओम बिरला के सामने कांग्रेस ने रामनारायण मीणा को उतारकर अपना मोहरा चल दिया है। कांग्रेस के सामने भाजपा ने एक कद्ावर नेता को उतार कर बडी चुनौती दी है वहीं कोटा हमेशा से ही भाजपा का गढ रहा है। ऐसे में ये सीट जीत पाना कांग्रेस के लिए बडी चुनोैती होगा।
आजादी के बाद इस सीट पर हुए कुल 17 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 4 चुनाव ही जीत पाई। जबकि 7 बार बीजेपी और 3 बार भारतीय जनसंघ, एक बार जनता पार्टी का कब्जा रहा। एक बार भारतीय लोकदल और एक बार रामराज्य परिषद के प्रत्याशी विजेता रहे।
1952 में हुए पहले आम चुनाव में रामराज्य परिषद से चंद्रसैन ने जीते इसके बाद 1957 में कांग्रेस के ओंकारलाल यहां से जीतकर संसद पहुंचे। इससे पूर्व भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में ही हुआ था और अपने शैशव काल में होने के बावजूद 1952 में पहली सीट चित्तौड से जीत ली। लेकिन इसके बाद जनसंघ को पूरे राजस्थान में दूसरी लोकसभा में खास सफलता नहीं मिल पाई। तीसरी लोकसभा तक जनसंघ पूरे प्रदेश में मजबूत विकल्प बन चुका था। ऐसे कोटा-बूंदी सीट पर जनसंघ ने अपना दबदाबा कायम किया जो लगातार 1962, 1967 और 1971 तक सीट पर जनसंघ का कब्जा रहा। इससे पूर्व 1957 में कांग्रेस के नेमीचंद और 52 में रामराज्य परिषद के चंद्रसेन यहां से सांसद चुने जा चुके थे। 1962 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के औंकार लाल ने जीत दर्ज की इसके बाद वे लगातार तीन कार्यकाल यहां से सांसद रहे।
1975 में इमरजेंसी के बाद 1977 का चुनाव जनसंघ पृष्ठभूमि के ही उम्मीदवार कृष्णकुमार गोयल भारतीय लोकदल से लडकर जीते। लेकिन 1980 में गोयल कांग्रेस के बृजसुन्दर को हराकर जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत गए।
कंग्रेस को 1957 के बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में फिर सफलता मिली। इस चुनाव में शांति धारीवाल केके गोयल से जीतकर संसद पहुंचे। लेकिन 1989 में बीजेपी के दाऊदयाल जोशी ने फिर उनसे यह सीट कांग्रेस से छीन ली। एक बार जोशी ने कोटा में पैर जमाया तो 1991 और 96 तक लगातार तीन चुनाव कांग्रेस को जीतने नहीं दिया। 1998 में कांग्रेस के रामनारायण मीणा ने इस सीट पर फिर अपना कब्जा जमाया लेकिन ये कब्जा वे लगातार नहीं रख पाए। 1999 में बीजेपी के रघुवीरसिंह कौशल ने फिर मीणा को हराकर यहां कब्जा कर लिया।
2004 में कौशल ने दोबारा हरिमोहन शर्मा को हराकर जीत दर्ज की। लेकिन 2009 में कोटा राजघराने के इज्यराजसिंह बीजेपी के श्याम शर्मा को हराकर कांग्रेस को जीत दिलाने में कामयाब रहे। 2014 में बीजेपी के ओम बिरला ने इज्यराज सिंह को हराकर एक बार फिर इस सीट पर बीजेपी को काबिज कर दिया। अब इज्यराजसिंह बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और उनकी पत्नी लाडपुरा सीट से बीजेपी विधायक है। 2019 का लोकसभा चुनाव भी बिडला ने जीता और वे वर्तमान मोदी सरकार में लोकसभा अध्यक्ष हैं।
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