राजस्थान की ऐसी संसदीय सीट जहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहता कांग्रेस का कोई दिग्गज
-1962 के बाद केवल एक चुनाव जीती कांग्रेस
-आजादी के बाद से भाजपा का सुरक्षित गढ रहा झालावाड-बारां
झालावाड। झालावाड-बारां राजस्थान का ऐसा संसदीय क्षेत्र है जो आजादी के बाद से ही भाजपा के लिए सुरक्षित गढ साबित होता रहा है। यहां अजादी के बाद से लेकर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में महज तीन पर ही कांग्रेस अपने प्रत्याशी जिता पाई है। जबकि 14 चुनावों में भगवा पार्टियों ( भाजपा-जनसंघ ) ने ही अपना वर्चस्व कायम रखा। भारतीय जनसंघ के प्रभाव में आने से पूर्व दो चुनाव ही कांग्रेस जीत पाई। इसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव को छोडकर आज तक कांगे्रस ने केवल हार का सामना किया।
वैसे तो राजस्थान के कोटा संभाग जिसे हाडोती के नाम से जाना जाता है वह पूरा इलाका ही भाजपा का गढ माना जाता रहा है। लेकिन झालावाड-बारां संसदीय क्षेत्र राजस्थन का ऐसा संसदीय क्षेत्र जहां कांग्रेस को चुनाव लडने के लिए जिताउ प्रत्याशी नहीं मिलते।
आजादी के बाद 1952 में पहला लोकसभा चुनाव लडा गया। इस दौरान कांग्रेस के सामने मैदान में कोई विपक्ष नहीं था। डाॅ श्यामाप्रसाद मुखर्जी, बलराज मधोक और पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने 1951 में भारतीय जनसंध की स्थापना कर कांग्रेस को विपक्ष के रूप में चुनौती दी थी। लेकिन पहले लोसभा चुनाव के दौरान जनसंघ की शैशव अवस्था थी। इस चुनाव में झालावाड-बारां संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के नेमीचंद कासलीवाल संासद चुने गए। इसके बाद 1957 में भी वे दुबारा विजेता रहे। लेकिन इसके बाद 1962, 67 और 71 के लोकसभा चुनावों में लगातार तीन बार भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी कोटा के पूर्व महाराव बृजराजसिंह यहां से विजेता रहे। इसके बाद 1977 और 1980 में जनता पार्टी से चतुर्भुज वर्मा को मतदाताओं ने जिताकर संसद में भेजा।
इसके बाद 1984 में 25 साल बाद फिर एक बार कांग्रेस के जुझार सिंह इस सीट पर जीतने में कामयाब रहे। लेकिन इसके बाद कभी कांग्रेस प्रत्याशी को जीत हासिल नहीं हुई। 1989 में पहली बार पूर्व सीए और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने यहां से सांसद का चुनाव लगा। इसके बाद उन्होंने 1991, 96, 98 और 99 में लगातार जीत हासिल की। 2003 में वे विधानसभा से चुना लडकर मुख्यमंत्री बनी तो उनके पुत्र दुष्यंत सिंह 2004 में भाजपा से लोकसभा का चुनाव लडे। इसके बाद 2009, 2013 और 2019 में वे लगातार चुनाव जीतकर संसदीय क्षेत्र पर भाजपा का कब्जा बनाए हुए है।
राजपरिवारों के प्रति विशेष लगाव
झालावाड बारां संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का राजपरिवारों के प्रति खास सम्मोहन रहा है। इस सीट पर तीन बार लगातार कोटा के पूर्व महाराव बृृजराज सिंह, पांच बार धौलपुर की महारानी और ग्वालियर सिंधिया राजघराने की बेटी वसुंधरा राजे और उनके बाद राजे के पुत्र और धौलपुर राजपरिवार के दुष्यंत सिंह लगातार चार बार सांसद रहे है। इस तरह 17 में 12 कार्यकाल राजपरिवारों के खाते में रहे। जबकि प्रथम सांसद कासलीवाल वैश्य परिवार, जुझारसिंह कुंदनपुर के राजपूत परिवार और चतुर्भुज वर्मा धाकड जाति के किसान परिवार से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे।
आठ में से सात विधानसभाओं पर भाजपा का कब्जा
झालावाड़-बारां लोकसभा सीट दो जिलों में आती हैं, जिसमें झालावाड़ और बारां में 4-4 विधानसभा है। इसमें बारां में बीजेपी के पास चारों की चारों विधानसभा सीट है, जबकि झालावाड़ में तीन विधानसभा बीजेपी के पास है। झालावाड़ में झालरापाटन, खानपुर, मनोहरथाना और डग विधानसभा क्षेत्र हैं। खानपुर से कांग्रेस के सुरेश गुर्जर विधायक हैं, जबकि झालरापाटन से वसुंधरा राजे, डग से कालूराम और मनोहरथाना से गोविंद प्रसाद भाजपा के विधायक हैं। वहीं अंता से कंवर लाल मीणा, बारां से रामस्वरूप बैरवा, छबडा से प्रताप सिंह सिंघवी और किशनगंज से ललित मीणा चारों भाजपा के विधायक हैं।
बिडला और राजे की काट ढूंढनी होगी कांग्रेस को
हाडोती की दोनों लोकसभा सीट बीजेपी का अभेद गढ़ है। यहां 17 में से 12 विधासभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। कोटा से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला प्रत्याशी है और झालावाड-बारां से राजे के पुत्र दुष्यंतसिंह भाजपा प्रत्याशी है। दोनों कददावर नेताओं से टक्कर लेने के लिए कांग्रेस को दोनों ही सीटों पर टक्कर के उम्मीदवार की तलाशने की बडी चुनौती है। हालत यह है कि झालावाड से कांग्रेस का कोई बडा नेता उम्मीदवार बनना ही नहीं चाहता।
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