' सोई कालीसिंध में पत्थर फेंक गए हीरा '
-कालीसिंध थर्मल में प्रस्तावित 800 मेगावाट की अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल यूनिट को छत्तीसगढ ले जाने के बयान पर विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक बयानों पर समीक्षात्मक रिपोर्ट।
प्रद्युम्न शर्मा
झालावाड। उर्जा मंत्री हीरा लाल नागर ने झालावाड कालीसिंध थर्मल को लेकर ऐसा क्या कह दिया कि सोये समंदर की तरह शांत पडी झालावाड की राजनीति में अचानक उफान आ गया। मामला नेताओं की बयाबाजी तक सीमित नहीं है। ज्ञापन रैली और धरने प्रदर्शन हो रहे है। संघर्ष समितियां बन रही है। शहर में पोस्टर और होर्डिंग लग रहे है। मंत्री का बयान ही राजनीति का हिस्सा है या बयान के बाद जो हो रहा वो राजनीति है। इस बयान को झालावाड के विकास और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राज की उपेक्षा से भी जोडा जा रहा है। मामले की वस्तुस्थिति समझने से पहले ये समझना जरूरी है कि आखिर नागर ने कहा क्या था।
बयान तब का है जब पिछले दिनों प्रदेश के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर झालावाड़ दौरे पर आए थे। नागर ने कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट निरीक्षण किया था। इसी दौरान मीडिया से बातचीत के में नागर ने केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी के सुझाव का हवाला देते हुए ये बात कही।
उनका कहना था कि - कुछ दिनों पहले उनकी केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी के साथ मुलाकात हुई थी। इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने उनको सुझाव दिया था कि कोल माइंस से कोयले को 1500 से 2000 किलोमीटर तक ले जाने के बजाए, जहां कोल माइंस हैं, वही प्लांट लगाया जाए। वहीं से बिजली का ट्रांसमिशन किया जाए. इससे कम लागत में बिजली प्राप्त हो सकती है। फिलहाल वो इसका परीक्षण करवा रहे हैं। अगर सस्ती लागत में बिजली उपलब्ध होगी तो हम चाहेंगे कि प्लांट वहीं (छत्तीसगढ़) बन जाए। अगर लागत बराबर आती है तो प्लांट यहीं लगाया जाएगा।
मंत्री ने जो कहा उनमें गौरतलब है कि वे अभी केवल परीक्षण करवा रहे है कि वहां प्लांट लगाने से बजली सस्ती पडेगी या नहीं। इसका अभी तथ्यात्मक अध्ययन करना बाकी है। यदि सस्ती पडी तो प्लांट वहां लगाने पर विचार करेंगे और यदि लागत बराबर आई तो प्लांट यहीं लगाया जाएगा। यानी उनका बयान केवल प्रहलाद जोशी की संकल्पना पर आधारित है। इस संकल्पना पर अभी बहुत अध्ययन होना बाकी है।
चूंकि बयान कालीसिंध थर्मल के परिसर में दिया है। तो मंत्री के इसी बयान को झालावाड थर्मल पावर प्लांट में पिछली सरकार की ओर से घोषित अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल थर्मल पावर प्रोजेक्ट की 800 मेगावाट की नई इकाई से जोडकर देखा जा रहा है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से 2022 के बजट भाषण में छबड़ा तथा झालावाड कालीसिंध थर्मल में तीन इकाइयों की घोषणा की थी। गत 18 जुलाई, 2022 को अनुमोदित प्रस्ताव के अनुसार छबड़ा थर्मल पावर प्रोजेक्ट का विस्तार करते हुए 660-660 मेगावाट क्षमता की 2 अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल इकाइयाँ और झालावाड कालीसिंध थर्मल परियोजना में 800 मेगावाट की एक अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल तकनीक आधारित इकाई स्थापित होना प्रस्तावित है।
छबड़ा एवं कालीसिंध में 2120 मेगावाट क्षमता की इन तीन नई विद्युत इकाईयों के स्थापित होने से न केवल बिजली उत्पादन क्षेत्र आत्मनिर्भर होगा। बल्कि यहां के लोगों को इंतजार था कि एक और यूनिट लगेगी तो बजट आएगा ओर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढेंगे।
इधर थर्मल की इस इकाई को छत्तीसगढ ले जाने के विचार को झालावाड की उपेक्षा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा से जोडकर देखा जा रहा है। मंत्री ने इधर बयान दिया था कि कांग्रेस इसके विरोध में सक्रिय हो गई। खानपुर विधायक सुरेश गुर्जर ने तो यहां तक कह दिया कि भजन लाल सरकार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को नीचा दिखाना चाहती है। इसीलिए पिछली सरकार में स्वीकृत कार्य को झालावाड से छत्तीसगढ ले जा रही है। इसके अलावा कांग्रेस जिलाध्यक्ष वीरेन्द्र गुर्जर, पीसीसी सदस्य शैलेन्द्र यादव, राजेश गुप्ता करावन सहित कई संगठन इसके विरोध में सक्रिय हो गए। जिला कलक्टर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिए और विरोध प्रदेर्शन किए। अगे की रणनीतियां बनाई जा रही है।
चूंकि कांग्रेस ने भले ही अपने पिछले पांच साल के कार्यकाल के दौरान झालावाड में इस इकाई की घोषणा के अलावा कुछ नहीं किया हो। लेकिन अब विपक्ष में है और विरोध के लिए मुददा तो चाहिए ही। ऐसे में कांग्रेस नेताओं के लिए उर्जा मंत्री नागर का यह अधपका बयान मुफीद साबित हो रहा है। इसको झालावाड के विकास और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की उपेक्षा से जोडकर पेश किया जा रहा है। हालांकि ये बात अलग है कि कांग्रेस सरकार के 2008 के कार्यकाल में ही झालावाड में स्वीकृत स्पाईस पार्क तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वयं अपने गृह क्षेत्र जोधपुर ले गए। उस समय कांग्रेस ने इसका कोई विरोध नहीं किया।
गौर करने का विषय ये है कि सरकार इस विचार के प्रति कितनी गंभीर है ये तो इस बयान से समझा जा सकता है कि सरकार अभी नफा नुकसान का आंकलन कर रही है। और क्या छत्तीसगढ में यूनिट लगाकर सरकार यहां से सस्ती बिजली ले पाएगी। आईए इसका भी विचार कर लेते हैं। छत्तीसगढ में नई इकाई लगाने के लिए कौन कौनसे इन्फ्रस्ट्रक्चर सरकार को जुटाने होंगे जिन पर करोडों की धनराशि खर्च करनी पडेगी।
जबकि झालावाड से मुफीद जगह संभवतया सरकार को छत्तीसगढ में भी ना मिले। पूर्व की वसुंधरा राजे सरकार यहां 4 इकाईयां लगाने के मकसद से आवश्यक मूलभूत संसाधन पूर्व में जुटा कर पहले ही राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को दे चुकी है। यहां यूनिट को स्थापित करने के अलावा अन्य सहायक संसाधनों के लिए कोई रकम खर्च नहीं करनी पडेगी। जबकि छत्त्ीसगढ में एक यूनिट लगाने के लिए सारे संसाधन जुटाने पर नए सिरे से करोडों रूपए खर्च करने पडेंगे।
ये मूलभूत सुविधाएं है, जिन पर छत्तीसगढ में होगा भारी खर्च
झालावाड में चार यूनिट की जमीन है उपलब्ध
जब कालीसिंध थर्मल की पहली इकाई स्वीकृत हुई तभी यहां चार इकाईयां लगाने जितनी जमीन झालरापाटन पंचायत समिति के मोतीपुरा, समराई और उंडल आदि गांवों के किसानों से सरकार अवाप्त कर चुकी है। यदि सरकार इकाई छत्तीसगढ में लगाती है तो वहां नए सिरे से जमीन तलाशने के लिए सर्वे, भू परीक्षण ओर उसे अवाप्त करने की प्रक्रिया में बडी रकम खर्च करनी होगी। इसके लिए छत्तीसगढ के किसानों या सरकार को मुआवजे में मोटी रकम देनी पडेगी। जबकि झालावड में इस पर कोई खर्च नहीं आ रहा।
पानी पर खर्च करनी पडे़गी बडी रकम
थर्मल परियोजनाओं को संचालित करने के लिए बडी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। राजस्थान सरकार झालावाड में थर्मल के निकट ही कालींसंध नदी पर जर्मन टेक्नॉलोजी का बडा बांध बना चुकी जिसमें 5 करोड 42 लाख घन मीटर पानी संग्रह करने की क्षमता है। 33 हाइड्रोलिक गेट वाला राजस्थान का यह अत्याधुनिक तकनीक वाला बांध है। इसका केचमेंट एरिया 7 हजार 547 वर्ग किलोमीटर है। इस बांध और थर्मल प्लांट को बनाने में झालावाड जिले के किसानों ने बडा त्याग किया है। बांध की डूब में सैंकडों किसानों की जमीनें और गांव के गांव आए हैं। सैंकडों किसानों को अपने घर गांव और जमीनें छोडने पडे। अब सरकार छत्तीसगढ में फिर से यही सारी प्रक्रिया करती है तो वहां नए बांध बनाने, जमीनें अवाप्त करने और लोगों का पुनर्वास करने में ही करोडों रूपए खर्च करने पडेंगे। इतना ही नहीं हजारों लोगों को बेघर होने का दर्द झेलने के साथ ही सरकारों को भी लोगों के विरोध और आंदोलनों के रूबरू होना पड़ सकता है। और यदि वहां आसपास कोई बांध पहले से है तो पाइप लाइन बिछाने और प्रतिवर्ष वहां के जलसंसाधन विभाग को पानी की कीमत चुकाने पर पैसा खर्च करना पडेगा।
बिछानी पडेगी टावर ग्रिड लाइनें
छत्तीसगढ से राजस्थान तक बिजली लाने के लिए राज्य सरकार को करीब एक हजार किलोमीटर से भी लंबी टावर लाइनें लगानी पडेगी। इस तंत्र को विकसित करने में करोडों रूपए खर्च करने के साथ ही समय भी लगेगा। जबकि झालावाड़ कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट की 600-600 मेगावाट की दो इकाईयां पूर्व में ही संचालित है। इनसे उत्पादित बिजली को वितरित करने के लिए यहां पहले ही पर्याप्त क्षमता का आपूर्ति तंत्र कार्य कर रहा है।
भोपाल तक रेल लाइन जुड़ने से कम होगी दूरी
वर्तमान में झालावाड़ थर्मल में कोयले की आपूर्ति छत्तीसगढ की परसा कोयला खदान से हो रही है। वर्ममान में यह आपूर्ति कोटा-रामगंजमंडी मार्ग से आ रही है। जबकि झालावाड-भोपाल रेल लाइन का काम करीब करीब पूरा होने को है। वर्ममान में मध्यप्रदेश सीमा तक रेल लाइन पूरी हो चुकी है। जिसका तकनीकी परीक्षण भी किया जा चुका है। इसके आगे मध्यप्रदेश में राजस्थान की सीमा से ब्यावरा तक जोडने के लिए तेजी काम जारी है। यह काम पूरा होते ही कोयले की आपूर्ति छत्तीसगढ से वाया भोपाल होने लगेगी जिससे दूरी और कम हो जाएगी और कोयला परिवहन खर्च और कम हो जाएगा।
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