भूमाफियाओं पर शिकंजा, कृषि भूमि को सिवायचक में दर्ज करने की सिफारिश
बिना भू उपयोग परिवर्तन कराए बेचे जा रहे थे भूखंड
झालावाड। भवानीमंडी के मांडवी में बिना भू उपयोग परिवर्तन कराए अवैध कॉलोनियां विकसित करने के मामले में सत्यार्थ क्रांति के समाचार पर प्रशासन ने सकारात्मक पहल की है। राजस्व विभाग और प्रशासन की ओर से की गई जांच में खातेदारों द्वारा कृषि भूमि पर आवासीय प्रयोजन से भूखंडों के बेचान किए जाने की पुष्टि हो गई है। तहसीलदार ने इस भूमि को सिवायचक में दर्ज करने सिफारिश एसडीएम को की है।
भवानीमंडी शहर में भू माफियाआंें ने सैकड़ों भूखंड कृषि भूमि पर आवासीय प्रयोजनार्थ बेच दिए है। ऐसे भूखंड पर बने मकान स्वायत्त शासन विभाग की टाउन प्लानिंग योजनाओं से तो बाहर रहते ही है दूसरी ओर कॉलोनाइजर पर भी यहां पर सुविधाएं विकसित नहीं करते। जिससे इनकों न तो आवासीय पट्टे मिल पाते और न सडक, नाली, सफाई और रोड लाइट जैसी सुविधा मिलती। कानूनी विवाद की स्थिति में ये मकान कृषि भूमि पर बसाए गए अवैध मकान कहलाते हैं।
गत दिनों एसडीएम कार्यालय के निकट ही ऐसी ही कृषि भूमि पर अवैध तरीके से आवासीय प्रयोजन के लिए भूखंड बेचने का समाचार सत्यार्थ क्रांति ने प्रकाशित किया था। जिसके बाद प्रशासन ने इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उपखंड मजिस्ट्रेट ने मामले की जांच के आदेश तहसीलदार को दिए। जिसके बाद तहसीलदार ने गत 1 अक्टूबर को जांच कर रिपोर्ट तहसीलदार को भेज दी।
रिपोर्ट में राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 175-177 के तहत कार्रवाई करते हुए सिवाय चक मंें दर्ज करने की सिफारिश उपखंड अधिकारी को की है।
पैसा बचाने का होता है खेल
स्वायत्त शासन विभाग की ओर से शहर में आबाद विस्तार के लिए नियमानुसार नई बस्तियों को विकसित करने के नियम बनाए गए है। जिसके तहत शहर का आवासीय विस्तार करने के लिए आसपास की कृषि भूमि को कॉलोनाईजर द्वारा पहले आवासीय श्रेणी में संपरिवर्तन करवाना अनिवार्य होता है। इसके बाद समुचित चौडाई की सडकें, पार्किंग, ग्रीन बेल्ट या पार्क सहित अन्य सार्वजनिक उपयोग के लिए भूमि को खुला छोडते हुए 60 भूमि पर समुचित साईज के भूखंड का नक्शा नगर नियोजक से स्वीकृत करवाना होता है। जिसके बाद कॉलोनी में सडक, बिजली के खंभे, पार्क आदि अन्य सुविधाएं विकसित करने पर ही भूखंड बेचे जा सकते है। ऐसी कॉलोनियां स्थानीय निकाय में पंजीकृत होती है और भूखंड धारक भूखंड पट्टा सहित स्थानीय निकाय की सभी सुविधाओं का हकदार होता है। लेकिन कॉलोनाइजर इस प्रक्रिया में होने वाले समस्त खर्च को बचाने के लिए सीधे कृषि भूमि पर मुड्डियां गाडकर कृषि भूमि को ही छोटी-छोटी कृषि भूमि में बांटकर खरीददारों के नाम रजिस्ट्री करवा देते है। ये भूखंड मकान बनने के बाद भी कृषि भूमि ही कहलाते है। इस पूरी प्रक्रिया में कॉलोनाईजर तो मोटी कमाई करते ही हैं, स्थानीय निकाय और राजस्व विभाग के अधिकारी कर्मचारी भी मोटा धन कमाते है।
कपासन मंे हो चुकी है कार्रवाई
एसडीएम गीतेश मालवीय ने तहसीलदार कपासन, भूपालसागर ईओ नपा कपासन को पत्र लिखकर निर्देशित किया है कि क्षेत्र में किसानों द्वारा भूमि का समुचित रूपांतरण करवाए बिना कृषि भूमि पर आवासीय कॉलोनियां विकसित की जा रही हैं। किसान जरिये रजिस्टर्ड विक्रय विलेख से कृषि भूमि को छोटी-छोटी जोतों में विभक्त कर आवासीय प्रयोजनार्थ विक्रय कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है किसान अपनी कृषि भूमि का दुरुपयोग कर रहे हैं, जो सीधे-सीधे राजस्थानी काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 175 का उल्लंघन हैं। इसलिए ऐसे किसानों को अंतर्गत धारा 175-177 राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 के प्रावधानों के अधीन अपनी कृषि भूमि से बेदखल कर दिया जाए। इस बाबत संबंधित अधिकारी अपने क्षेत्र में पटवारी, भू अभिलेख निरीक्षकों के जरिये ऐसे प्रकरणों को चिन्हित कर तुरंत सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत कराने के निर्देश दिए गए।
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