कोट पर जनेऊ डालकर घूमने वाले से डरते हैं लोग!
एक बात और यदि इस देश का आदमी किसी से डरा हुआ है तो केवल उस आदमी से डरा हुआ है जो कोट पर जनेऊ डालकर अपने आप को दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण बताता है और मुसलमानों एवं दलितों का स्वघोषित नेता बनता है। यदि किसी का दिल दलितों के लिए वाकई सहानुभूति रखता है तो वह स्वयं को दत्तात्रेय ब्राह्मण घोषित क्यों करता है? जब अपनी जाति अपनी मर्जी से ही घोषित करनी है तो स्वयं को दलित घोषित क्यों नहीं करते? क्या इसमें वे अपना अपमान समझते हैं?
राहुल गांधी ने अमरीका वालों से जाकर शिकायत की है कि भारत में सिक्ख पगड़ी नहीं पहन पा रहे हैं, कड़ा नहीं पहन पा रहे हैं, गुरुद्वारों में नहीं जा पा रहे हैं। अब पता नहीं अमरीका वाले भारत वालों को इस बात के लिए कितना डांटेंगे, फटकारेंगे, कितनी लानत-मलानत करेंगे और वित्तीय प्रतिबंध लगाएंगे! भारत के लोगों को डरना चाहिए, सचमुच!
समझ में नहीं आता कि जब इस देश में राहुल गांधी कोट पर जनेऊ ओढ़कर शिवमंदिरों में घुसे, तब भी उन्हें किसी ने नहीं रोका तो भला सिक्खों को उनके अपने देश भारत में पगड़ी बांधकर गुरुद्वारों में जाने से कौन रोक सकता है!
राहुल गांधी को शायद पता नहीं है कि प्रच्छन्न रूप से जिस हिन्दू जाति पर वे सिक्खों को पगड़ी नहीं पहनने देने का अरोप लगा रहे हैं, वस्तुतः वह हिन्दू जाति ही पगड़ी पहनकर सिक्ख बनी है। यह बात 325 साल से अधिक पुरानी नहीं है जब गुरु गोविंद सिंह ने पांच हिन्दुओं के सिरों पर पगड़ी बांधते हुए कहा था-
सकल जगत में खालसा पंथ गाजे। जगे धर्म हिन्दू तुरक धुंध भाजे।।
राहुल गांधी ने अमरीका वालों से जाकर यह भी कहा है कि अब भारत में लोग नरेन्द्र मोदी से नहीं डरते। जैसे ही 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजे आए, विदिन मिनिट्स लोगों का डर दूर हो गया। इसका श्रेय मुझे अर्थात् राहुल गांधी को नहीं जाता, इसका श्रेय कांग्रेस को और समस्त विपक्षी दलों को जाता है।
अरे भई एक ओर तो आप यह कह रहे हैं कि भारत में सिक्ख इतने डरे हुए हैं कि पगड़ी पहनकर गुरुद्वारों में नहीं जा पा रहे और दूसरी ही सांस में कह रहे हैं कि लोग अब नरेन्द्र मोदी से नहीं डर रहे!
पहले यह तो तय कर लीजिए कि लोग डर रहे हैं कि नहीं डर रहे! या केवल सिक्ख डर रहे हैं और बाकी लोगों का डर लोकसभा चुनावों के बाद दूर हो गया है क्योंकि कांग्रेस को 99 या 98 सीटें मिल गईं!
एक बात और समझ में नहीं आई कि लोग नरेन्द्र मोदी से क्यों डरेंगे? क्या कोई कानूनी दायरे में रहकर जीने वाला नागरिक अपने ही देश के प्रधानमंत्री से डरता है? देश का प्रधानमंत्री तो देश के लोगों का संरक्षक होता है, हितैषी होता है और विश्वसनीय मित्र होता है। ऐसे व्यक्ति से लोग क्यों डरेंगे?
क्या भारत के लोग नरेन्द्र मोदी के पहले के किसी भी प्रधानमंत्री से डरते थे? जिस समय देश अंग्रेजों के अधीन था, उस समय भी भारत के लोग इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनल्ड, चैम्बरलेन, विंस्टन चर्चिल और क्लेमेंट एटली आदि से नहीं डरते थे, तो देश की आजादी के 75 साल बाद नरेन्द्र मोदी से क्यों डरेंगे?
एक बार को यदि यह मान भी लिया जाए कि भारत के लोग अपने ही प्रधानमंत्री से डरे तो इसके केवल दो ही उदाहरण हैं, यदि सिक्ख डरे तो राजीव गांधी के शासन काल में और हिन्दू डरे तो केवल इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपात् काल में।
अब नरेन्द्र मोदी के शासन काल में कौन डर रहा है भाई! मुसलमान तो खुद कहते हैं कि हम किसी से नहीं डरते। यह तो केवल राहुल गांधी ही हैं जो कुछ दिन पहले तक यह कहते फिरते थे कि देश का मुसलमान डरा हुआ है। अगली ही सांस में यह भी कहते थे कि मैं नरेन्द्र मोदी से नहीं डरता।
समझ में नहीं आता कि वह कौनसा डर है जिसकी बात हर समय राहुल गांधी किसी न किसी बहाने से किया करते हैं! यह डर काले साये की भांति राहुल गांधी के अवचेतन पर नहीं तो कम से कम जिह्वा पर अवश्य आकर बैठ गया है। कहीं यह सत्ता से वंचित रह जाने का भय तो नहीं है? संभवतः राहुल गांधी को भय है कि प्रधानमंत्री की जिस कुर्सी पर उनके पिता, दादी और दादी के पिता बरसों-बरस बैठे रहे, उस कुर्सी तक वे कभी नहीं पहुंच पाएंगे। कांग्रेस बुद्धिजीवियों की पार्टी है,क्या कोई राहुल गांधी को समझाएगा कि प्रधानमंत्री बनने के लिए क्या करना पड़ता है!
यदि आज तक राहुल गांधी प्रधानमंत्री की कुर्सी के कुछ नजदीक तक भी नहीं पहुंच पाए तो इसमें कोई क्या कर सकता है। वे बातें ही ऐसी अटपटी, और बचकानी करते हैं और विदेश में जाकर कहते हैं कि भारत में चुनाव निष्पक्ष नहीं होते। जब चुनाव निष्पक्ष होते ही नहीं है तो फिर राहुल अपने लिए कौनसा सुनहरा भविष्य देख रहे हैं?
एक बात और यदि इस देश का आदमी किसी से डरा हुआ है तो केवल उस आदमी से डरा हुआ है जो कोट पर जनेऊ डालकर अपने आप को दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण बताता है और मुसलमानों एवं दलितों का स्वघोषित नेता बनता है। यदि किसी का दिल दलितों के लिए वाकई सहानुभूति रखता है तो वह स्वयं को दत्तात्रेय ब्राह्मण घोषित क्यों करता है? जब अपनी जाति अपनी मर्जी से ही घोषित करनी है तो स्वयं को दलित घोषित क्यों नहीं करते? क्या इसमें वे अपना अपमान समझते हैं?
जब भारत में कोई व्यक्ति कोट पर जनेऊ डालकर स्वयं को ब्राह्मण बता सकता है तो स्वयं को दलित घोषित क्यों नहीं कर सकता! आजकल तो वैसे भी हिन्दू तीर्थों पर बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान गले में जनेऊ डालकर बैठ गए हैं, वे शायद कोट पर जनेऊ डालकर नहीं बैठ सकते!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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