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दुनिया की महाशक्तियांं में माइक्रोचिप उत्पादन की होड़, भारत का होगा दबदबा

-अमरीका, जापान, कोरिया और ताईवान आगे

-चीन जुटा अमरीका को टक्कर देने में 

-भारत तकनीक में मजबूत, लगेगा समय

छोटी सी माईक्रोचिप भविष्य में दुनिया की अर्थव्यवस्था में वैसा ही दबदबा बनाएगी जो आज के समय में क्रूड ऑयल का है। तीन दशक के अधिक समय से इस तकनीक पर काम कर रहे भारत के इंजीनियर और वैज्ञानिक आज के समय डिजाईनिंग में तो अव्वल है। भारतीय मूल के इंजीनियर और सीईओ आज अमरीका सहित दुनिया की बडी टेक कंपनियों को चला रहे हैं। लेकिन इसे अब तक रही सरकारों की इच्छा शक्ति में कमी कहें या दूर दृष्टि की कमी कि भारत खुद इसके उत्पादन में फिसड्डी है।  

फिलहाल अमेरिका सेमीकंडक्टर के मार्केट में 48 फीसदी हिस्सेदारी के साथ दुनिया में अव्वल है। इसके बाद दक्षिण कोरिया, जापान, ताईवान का दबदबा है। चीन 7 फीसदी हिस्सेदारी से छलांग लगाकर सीधे अमरीका से मुकाबला करने में जी जान से जुटा है। दुनिया की ये दो विशाल अर्थव्यवस्थाएँ चिप उद्योग में बढ़त बनाने की होड़ में लगी हैं। चीन भले ही अमेरिका से बहुत हद तक पीछे है, लेकिन उसकी रफ़्तार काफी तेज़ है। 

 सेमी-कंडक्टर माइक्रोचिप के क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गहरी दिलचस्पी ले रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि मोदी जी ने भारत को सेमीकंडक्टर का एक बड़ा केंद्र बनाने की गारंटी दी है।

 भविष्य में सेमीकंडक्टर के महत्व को देखते हुए भारत भी इसके निर्माण की दौड़ में पूरी तैयारी के साथ कूद गया है। चीन की ताईवान और अमरीका के साथ तनातनी के बाद कई ताईवानी और अमरीकी कंपनियां भारत का साथ देने के लिए तैयार है। गत दिनां गुजरात के साणंद में अमेरिकी कंपनी माइक्रॉन टेक्नोलॉजी ने अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर असेंबलिंग, पैकेजिंग और परीक्षण के लिए उद्योग शुरू भी कर दिया है।

यह कारखाना पौने तीन अरब डॉलर की लागत से बनाया जा रहा है। इसमें 82.5 करोड़ डॉलर का निवेश माइक्रॉन कर रहा है। जबकि बाकी निवेश भारत और गुजरात सरकार का है। इसके निर्माण का काम टाटा प्रोजेक्ट्स कर रहा है। यहां से अगले साल दिसंबर तक उत्पादन चालू होने की उम्मीद है।

इस कारण रहा भारत पीछे

सेमी-कंडक्टर इकोसिस्टम में डिजाइनिंग, उत्पादन, परीक्षण और पैकेजिंग शामिल हैं। इसके अलावा चिप बनाने के लिए आधुनिक उपकरणों, खनिजों और गैसों की ज़रूरत होती है। चिप डिज़ाइनिंग का अनुभव भारत के पास काफी उन्नत है। जिसका काम मुख्य रूप से बेंगलुरु में होता है। लेकिन देश में उत्पादन, पैकेजिंग, उपकरण और कच्चे माल का अभाव है। यानी इस तकनीक का गत तीन दशक से अधिक समय में भी सरकारें औद्योगिकरण नहीं कर पाई। जानकारों का कहना है कि चिप का उत्पादन साधारण उद्योग नहीं है। यह उच्च तकनीक और उच्च स्तरीय उपकरण, सामग्री की ज़रूरत होती है। सामग्री का उत्पादन भी भारत में ही होना चाहिए। सामग्री उत्पादन के मामले में किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। फिलहाल भारत इस समय इस दौड़ के शुरुआती चरण में है और ग्लोबल प्लेयर बनने में 10 से 20 साल भी लग सकते हैं। ताइवान और दक्षिण कोरिया वर्तमान में जिस मुकाम पर है वहां आने में उनको दशकों लग गए। सेमी कंडक्टर निर्माण में 150 से अधिक प्रकार के रसायनों और 30 से अधिक प्रकार की गैसों और खनिजों का इस्तेमाल होता है। फ़िलहाल ये सभी चीज़ें कुछ ही देशों में उपलब्ध हैं। भारत को इसके लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। इसके अलावा चिप उद्योग के लिए सहायक उद्योग खडे करना भी बड़ी चुनौती है। सहायक सामग्रियों के उत्पादन से ही भारत बडा हब बन सकता है। 

साजिश या हादसा, भारत हो चुका होता सिरमौर

भारत में चिप बनाने वाली एकमात्र कंपनी ’सेमीकंडक्टर लेबोरटरी’ (एससीएल) ने 1984 में ही इसका उत्पादन शुरू कर दिया था। जबकि ताइवान की टॉप सेमी-कंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी’ (टीएसएमसी) की स्थापना ही इसके तीन साल बाद हुई थी। आज टीएसएमसी दुनिया की नंबर वन लॉजिक सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी है। जिसका सालाना कारोबार 70 अरब डॉलर से अधिक है। जबकि एससीएल का केवल 50 लाख डॉलर का। इसमें संदेह नहीं भारत की इस समय चिप उत्पादन में पूरी दुनिया में धाक होती। लेकिन एक बड़ी घटना ने देश को सेमी-कंडक्टर के मामले में बहुत पीछे धकेल दिया। साल 1989 में मोहाली की एससीएल फैक्ट्री एक रहस्यमयी तरीके से आग लग गई। जिसमें पूरी फैक्ट्री और लैब नष्ट हो गई थी। यह आज भी रहस्य है कि यह दुर्घटना थी या कोई साज़िश। बाद में फैक्ट्री दोबारा शुरू की गई लेकिन दौड़ में बहुत पीछे रह गई।

ताईवान के लोगों की मेहनत 

ताइवान सेमीकंडक्टर के उत्पादन में आज जिस मुकाम पर है उसका श्रेय ताइवानी मूल के लोगों को जाता है। जिन्होंने अमेरिका में सेमी-कंडक्टर बनाने का अनुभव हासिल किया और बड़े पदों पर काम किया। हालांकि बड़ी कंपनियों के बड़े पदों पर भारतीयों की कोई कमी नहीं है। अमेरिका सहित अन्य देशां में सेमी-कंडक्टर कारोबार में अपना नाम कमा रहे हैं।  भारत उन्हें वापस बुलाकर उद्योग को प्रोत्साहित करना होगा। पूरी दुनिया के जानकार मानते हैं भारत के पास बहुत उन्नत इंजीनियर हैं जो डिज़ाइन में पहले से कुशल हैं। अमेरिका में ही बहुत सारे सीईओ भारतीय हैं। डिज़ाइन के मोर्चे पर भारत का दबदबा है। यदि सही और सतत प्रयास हुए तो भारत उत्पादन में भी अपना दबदबा कायम कर सकता है। इसके लिए आईआईटी, इंजीनिरिंग और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों को अपडेट करने की जरूरत है। जिससे कुशल मैनपावर मिल सके। 

हालांकि नए प्रोजेक्टस के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ समझौते कर नए उद्योग बढाने के कगार पर है। पीएम मोदी स्वयं इन परियोजनाओं में रूचि ले रहे हैं। 

 

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