370 हटने के बाद 16 लाख सैलानी पहुंचे कश्मीर
सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी जानकारी
2020 में पहली बार हुए निकाय चुनाव
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देश का संविधान और जनकल्याणकारी कानून जम्मू और कश्मीर में 370 हटाने के बाद ही लागू हुए है। जबकि पहले जिन लोगों पर वहां की जनता को रास्ता दिखाने की जिम्मेदारी थी, वे लोगों को ये समझाते रहे थे कि अनुच्छेद 370 उनका विशेषाधिकार है और वे लडेंगे तो कोई इसे छीन नहीं सकता है। ये सबसे दुखद बात है कि अदालत के समक्ष दो प्रमुख राजनीतिक दल अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेध 370 का बचाव कर रहे हैं। वे सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित राज्य बनाने के फैसले पर केन्द्र सरकार का पक्ष रख रहे थे।
तुषार मेहता ने अदालत को ध्यान दिलाया कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद 16 लाख सैलानी कश्मीर की यात्रा कर चुके हैं। नए होटल बनाए जा रहे हैं। जिससे बडी संख्या में लोगों को रोजगार मुहैया मिल रहा है। साल 2020 में दशकों बाद पहली बार वहां स्थानीय निकाय चुनाव कराए गए। पहली बार इतने अंतराल के दौरान वहां कोई हडताल नहीं हुई और न कर्फ्यू लगा।
अनुच्छेद 370 को खत्म करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस आदेश के साथ ही राज्य में लोकतंत्र बहाली की जरूरत पर जोर दिया। इन याचिकाओं पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।
इस कारण लिया सख्त फैसला
तुषार मेहता ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फरवरी, 2019 में पुलवामा में जेहादी हमला हुआ था। जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत हुई। इस कारण केंद्र सरकार को राज्य का स्पेशल स्टेटस खत्म कर भारत संघ में पूर्ण विलय करने के लिए मजबूर होना पडा। तुषार मेहता ने कहा जिन नौजवानों को पहले आतंकवादी गुट भर्ती कर लिया करते थे और जिनके मन में भारत विरोधी भावनाएं भरी जा रही थीं, उन्हें रोजगार मुहैया कराया जा रहा है। केंद्र की इन नीतियों से पता चलेगा कि जम्मू और कश्मीर का पुनर्गठन सही था या गलत।
पहले हो चुका है पंजाब का बंटवारा
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने ये भी बताया कि वर्ष 1966 में पंजाब का भी बंटवारा किया गया था। जिसमें हरियाणा को अलग कर चंडीगढ केंद्र शासित प्रदेश बनाया था। तब वहां भी राष्ट्रपति शासन लागू था। उन्होंने कहा, ये सभी नीतिगत मुद्दे है। जब कभी किसी राज्य का पुनर्गठन होता है, इससे संबंधित योजना में केंद्र यह भी तय करती है कि राज्य के पुनर्गठन के बाद क्या किया जाएगा।
Share this news
Comments